Home Bihar तेजस्वी को विरासत सौपेंगे शरद: 25 साल पहले अध्यक्ष पद की लड़ाई में लालू पर पड़े थे भारी, आज पार्टी का करेंगे राजद में विलय

तेजस्वी को विरासत सौपेंगे शरद: 25 साल पहले अध्यक्ष पद की लड़ाई में लालू पर पड़े थे भारी, आज पार्टी का करेंगे राजद में विलय

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तेजस्वी को विरासत सौपेंगे शरद: 25 साल पहले अध्यक्ष पद की लड़ाई में लालू पर पड़े थे भारी, आज पार्टी का करेंगे राजद में विलय

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पटना

द्वारा प्रकाशित: प्रांजुल श्रीवास्तव
अपडेटेड सन, 20 मार्च 2022 09:26 AM IST

सार

शरद यादव की पार्टी लोकतांत्रित जनता दल का राष्ट्रीय जनता दल में आज बिना शर्त विलय होगा, कुछ दिन पहले ही दिल्ली में तेजस्वी यादव से शरद यादव ने मुलाकात की थी, जिस दौरान उन्होने इस बात के संकेत भी दिए थे। शरद यादव ने कहा था कि तेजस्वी यादव अब राजनीतिक विरासत संभालेंगे।

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बिहार की राजनीति में एक बार फिर से बड़ा उलटफेर होने जा रहा है। 2018 में नीतीश कुमार से अलग होकर अलग पार्टी बनाने वाले शरद यादव अब लालू यादव के साथ होने जा रहे हैं। आज उनकी पार्टी लोकतांत्रित जनता दल का राजद में विलय हो जाएगा। वह दिल्ली स्थित अपने आवास पर आयोजित कार्यक्रम में राजद में शामिल होंगे। इस दौरान कार्यक्रम में लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव भी मौजूद रहेंगे।

पूर्ववर्ती जनता दल को एक करने का प्रयास
शरद यादव ने राजद में विलय की घोषणा पहले ही कर दी थी। उन्होंने बुधवार को ट्वीट करके यह स्पष्ट कर दिया था। शरद यादव ने कहा था कि, “यह पूर्ववर्ती जनता दल के अलग-अलग संगठनों को एक साथ लाने के उनके प्रयासों का हिस्सा होगा। देश में मजबूत विपक्ष स्थापित करना समय की मांग है। इसलिए मैं इस दिशा में पूर्व जनता दल के साथ-साथ अन्य समान विचारधारा वाली पार्टियों को एकजुट करने के लिए लंबे समय से काम कर रहा हूं। इसलिए, मैंने अपनी पार्टी एलजेडी का राजद में विलय करने का फैसला किया है।”

1997 में अध्यक्ष पद को लेकर लालू-शरद में ठनी
जुलाई, 1997 में जनता दल के अध्यक्ष पद को लेकर लालू यादव और शरद यादव में ठन गई। उस समय जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष शरद यादव हुआ करते थे। लालू प्रसाद यादव ने अध्यक्ष पद को लेकर शरद यादव को चुनौती दे दी। इस चुनाव के लिए लालू प्रसाद यादव ने अपने सहयोगी रघुवंश प्रसाद सिंह को निर्वाचन अधिकारी बनाया था, शरद यादव इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए और सुप्रीम कोर्ट ने रघुवंश प्रसाद सिंह को हटाकर मधु दंडवते को निर्वाचन अधिकारी बना दिया। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष रहते हुए शरद यादव ने पार्टी की कार्यकारिणी में अपने समर्थकों की संख्या इतनी कर ली थी कि लालू प्रसाद यादव को अंदाजा हो गया था कि अगर वे चुनाव लड़ेंगे तो उनकी हार होगी। इसलिए लालू ने अलग पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बनाने का फैसला लिया।

लालू के प्रतिद्वंदी के रूप में थी पहचान
राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने 1997 में जनता दल छोड़ दिया था और इसके नेतृत्व के साथ अपने मतभेदों के कारण अपनी पार्टी बनाई थी क्योंकि चारा घोटाले के खिलाफ जांच में तेजी आई थी, जिसमें वह मुख्य आरोपी थे। शरद यादव को तब जनता दल के भीतर उनके प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा गया था और बाद में वह नीतीश कुमार के साथ 2005 में बिहार में राजद के 15 साल के शासन को समाप्त करने के अभियान में शामिल हो गए थे।

2018 से नहीं लड़ा अकेले चुनाव
74 वर्षीय शरद यादव ने 2018 में नीतीश कुमार से अलग होकर लोकतांत्रित जनता दल की स्थापना की थी। हालांकि, इसके बाद से ही उनका राजनीतिक पतन भी शुरू हो गया। जदयू से अलग होने के बाद से उन्होंने अकेले चुनाव नहीं लड़ा। खुद पार्टी प्रमुख शरद यादव ने 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा था। 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में, शरद की बेटी सुहाशिनी यादव ने भी राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा था।

विस्तार

बिहार की राजनीति में एक बार फिर से बड़ा उलटफेर होने जा रहा है। 2018 में नीतीश कुमार से अलग होकर अलग पार्टी बनाने वाले शरद यादव अब लालू यादव के साथ होने जा रहे हैं। आज उनकी पार्टी लोकतांत्रित जनता दल का राजद में विलय हो जाएगा। वह दिल्ली स्थित अपने आवास पर आयोजित कार्यक्रम में राजद में शामिल होंगे। इस दौरान कार्यक्रम में लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव भी मौजूद रहेंगे।

पूर्ववर्ती जनता दल को एक करने का प्रयास

शरद यादव ने राजद में विलय की घोषणा पहले ही कर दी थी। उन्होंने बुधवार को ट्वीट करके यह स्पष्ट कर दिया था। शरद यादव ने कहा था कि, “यह पूर्ववर्ती जनता दल के अलग-अलग संगठनों को एक साथ लाने के उनके प्रयासों का हिस्सा होगा। देश में मजबूत विपक्ष स्थापित करना समय की मांग है। इसलिए मैं इस दिशा में पूर्व जनता दल के साथ-साथ अन्य समान विचारधारा वाली पार्टियों को एकजुट करने के लिए लंबे समय से काम कर रहा हूं। इसलिए, मैंने अपनी पार्टी एलजेडी का राजद में विलय करने का फैसला किया है।”

1997 में अध्यक्ष पद को लेकर लालू-शरद में ठनी

जुलाई, 1997 में जनता दल के अध्यक्ष पद को लेकर लालू यादव और शरद यादव में ठन गई। उस समय जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष शरद यादव हुआ करते थे। लालू प्रसाद यादव ने अध्यक्ष पद को लेकर शरद यादव को चुनौती दे दी। इस चुनाव के लिए लालू प्रसाद यादव ने अपने सहयोगी रघुवंश प्रसाद सिंह को निर्वाचन अधिकारी बनाया था, शरद यादव इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए और सुप्रीम कोर्ट ने रघुवंश प्रसाद सिंह को हटाकर मधु दंडवते को निर्वाचन अधिकारी बना दिया। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष रहते हुए शरद यादव ने पार्टी की कार्यकारिणी में अपने समर्थकों की संख्या इतनी कर ली थी कि लालू प्रसाद यादव को अंदाजा हो गया था कि अगर वे चुनाव लड़ेंगे तो उनकी हार होगी। इसलिए लालू ने अलग पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बनाने का फैसला लिया।

लालू के प्रतिद्वंदी के रूप में थी पहचान

राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने 1997 में जनता दल छोड़ दिया था और इसके नेतृत्व के साथ अपने मतभेदों के कारण अपनी पार्टी बनाई थी क्योंकि चारा घोटाले के खिलाफ जांच में तेजी आई थी, जिसमें वह मुख्य आरोपी थे। शरद यादव को तब जनता दल के भीतर उनके प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा गया था और बाद में वह नीतीश कुमार के साथ 2005 में बिहार में राजद के 15 साल के शासन को समाप्त करने के अभियान में शामिल हो गए थे।

2018 से नहीं लड़ा अकेले चुनाव

74 वर्षीय शरद यादव ने 2018 में नीतीश कुमार से अलग होकर लोकतांत्रित जनता दल की स्थापना की थी। हालांकि, इसके बाद से ही उनका राजनीतिक पतन भी शुरू हो गया। जदयू से अलग होने के बाद से उन्होंने अकेले चुनाव नहीं लड़ा। खुद पार्टी प्रमुख शरद यादव ने 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा था। 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में, शरद की बेटी सुहाशिनी यादव ने भी राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा था।

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