
[ad_1]
जेडीयू का सीट पर कब्जा
तारापुर विधानसभा सीट पर स्थिति में बदलाव 2010 के विधानसभा चुनाव में आया। जब शकुनी चौधरी को जेडीयू नेत्री नीता चौधरी ने हरा दिया। जेडीपू ने 2010 में इस सीट पर अपना खाता खोला। उसके बाद 2015 के चुनाव में भी जेडीयू को जीत मिली। मेवा लाल चौधरी को तारापुर विधानसभा चुनाव का ताज मिला। तब से लेकर अभी तक तारापुर जेडीयू की मजबूत सीट है। अब राजद और जेडीयू महागठबंधन में एक साथ हैं। सीट किसी के भी हिस्से में जाए। महागठबंधन की दावेदारी इस सीट पर मजबूत दिखती है। आपको बता दें कि कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर विवादों में रहे मेवालाल चौधरी के निधन के बाद तारापुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए। जिसमें जेडीयू के उम्मीदवार राजीव कुमार सिंह ने जीत हासिल की। उपचुनाव में राजीव कुमार सिंह को 78 हजार 966 वोट मिले थे। वहीं राजद के प्रत्याशी को 75 हजार 145 वोट मिले थे। राजीव कुमार सिंह को सभी जातियों का सपोर्ट मिला। हालांकि राजद ने जेडीयू को इस सीट पर कड़ी टक्कर दी थी। उपचुनाव के दौरान बिहार में महागठबंधन एक नहीं था। कांग्रेस और राजद ने अलग-अलग उम्मीदवार खड़े किये थे। जेडीयू एनडीए का हिस्सा रही। परिणाम जेडीयू के पक्ष में आ गया।
कुशवाहा निर्णायक भूमिका में
तारापुर का तगड़ा सियासी सच यहां का जातिगत फैक्टर है। यहां हमेशा से उम्मीदवारों की जाति देखकर वोटिंग होती है। विधानसभा का इलाका कुशवाहा वोटरों का इलाका है। इस सीट पर कुशवाहा वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। हालांकि, बीजेपी के परंपरागत वोटर ब्राह्मणों की भूमिका भी चुनाव में जबरदस्त होती है। ब्राह्मणों का वोट जिधर जाता है, जीत उसी की होती है। इलाके में यादव जाति के लोगों की संख्या दूसरे स्थान पर है। इस विधानसभा सीट पर वैश्य जाति की आबादी तीसरे स्थान पर है। वहीं, मुसलमानों की आबादी चौथे स्थान पर है। बिहार विधानसभा 2025 के दौरान यहां लड़ाई जबरदस्त होगी। महागठबंधन के सात दल एक तरफ होंगे, बीजेपी अकेले होगी। बीजेपी को पता है कि इस सीट पर उसके कोर वोटर भी अच्छी खासी संख्या में हैं। वैश्य और कुशवाहा के कुछ वोट भी बीजेपी ट्रांसफर कर लेती है, तो फिर जीत पक्की होगी। सियासी जानकार मानते हैं कि मुस्लिमों की आबादी यहां ठीक-ठाक है। वे चौथे स्थान पर हैं। अभी तक मुसलमानों ने एक तरफा वोट नीतीश कुमार की पार्टी को दिया है। इस बार यदि ओवैसी की पार्टी का उम्मीदवार खड़ा होता है, तो वो महागठबंधन के उम्मीदवार के लिए संकट पैदा कर देगा। जानकारों की मानें, यहां सवर्ण मतदाता भी चौथे स्थान पर हैं। इस तरह मुस्लिम और सवर्ण वोटरों की संख्या एक बराबर है।
ओवैसी बिगाड़ेंगे खेल
स्थानीय जानकार मानते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में असली खेल जेडीयू के साथ हो सकता है। यहां पहले यादव, मुसलमान और वैश्य का वोट राजद को मिलता रहा है। यदि आरजेडी की ओर से उम्मीदवार खड़ा होता है, फिर भी मुस्लिम वोट ओवैसी की तरफ जाएंगे। जेडीयू अपना उम्मीदवार देती है, तो कुढ़नी और गोपालगंज की तरह आरजेडी के वोटर जेडीयू की तरफ ट्रांसफर नहीं हो सकते हैं। सबसे बड़ा खेल ओवैसी की पार्टी कर सकती है। ओवैसी की पार्टी को चौथे स्थान पर रहने वाले मुस्लिम सपोर्ट कर सकते हैं। 2025 में महागठबंधन का खेल बिगड़ सकता है। दूसरी ओर यदि बीजेपी मेहनत करती है, तो विधानसभा क्षेत्र के निर्णायक कुशवाहा वोटरों में सेंध लगा सकती है। बीजेपी के साथ वैश्य वोटर हैं हीं। उसके अलावा अगड़ी जातियों को अपने पाले में करके बीजेपी अपना काम बना सकती है। हालांकि, एक बात ये भी तय है कि इस सीट पर कुशवाहा वोटरों की संख्या के बराबर किसी जाति का वोट नहीं है। यादव, मुस्लिम और वैश्य के वोट को मिला दिया जाए, फिर भी कुशवाहा वोटर ज्यादा हैं। उन्हीं के मतदान पर जीत और हार की बात तय होगी। स्थानीय जानकार मानते हैं कि इस सीट पर पहले मुस्लिम, राजपूत, ब्राह्मण और भूमिहार वोट कांग्रेस को सपोर्ट करते आए हैं। स्वभाविक है कि जेडीयू ये वीनिंग सीट अपने पास रखेगी। वैसे में बीजेपी के पास मौका है अगड़ी जातियों के साथ भूमिहार और राजपूत वोटों को अपने पाले में करने का।
जातिगत फैक्टर महत्वपूर्ण
यहां के वोटरों को चुप्पा वोटर भी कहा जाता है। यहां के वोटर सीधे मतदान के दिन अपना फैसला करने के लिए जाने जाते हैं। स्थानीय जानकार कहते हैं कि कुशवाहा जाति से आने वाले प्रत्याशियों की यहां विजय निश्चित होती है। हां, दल भी मायने रखता है। कुशवाहा के बराबर किसी भी जाति का वोट नहीं है। कुशवाहा चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं। विधानसभा सीट के सवर्ण और अल्पसंख्यक वोटर अच्छी संख्या में हैं, लेकिन वो जीत का फैक्टर नहीं बन पाते। राजनीतिक पार्टियां कुशवाहा के अलावा बाकी वोटरों को प्रभावित करने में जुटी रहती हैं। इस दौरान कुशवाहा वोटर यदि टूटते हैं, तब ही किसी अन्य के जीत की संभावना बनती है। वैश्य यहां चुपचाप वोटिंग करते हैं। सवर्ण का सीधा सपोर्ट बीजेपी को रहता है। स्थानीय जानकार मानते हैं कि इस सीट पर जातिगत फैक्टर बड़ा सच है। 1985 से अब तक किसी अन्य जाति का उम्मीदवार विधायक नहीं बना। इस सीट से शकुनी चौधरी, उनकी पत्नी पार्वती, नीती चौधरी और उसके बाद स्व. मेवालाल चौधरी विधायक रहे। विधानसभा सीट के संग्रामपुर, टेटिया बंबर और हवेली खड़गपुर आर्थिक क्षेत्र माना जाता है। यहां सवर्ण वोटरों की संख्या ज्यादा है। जानकार कहते हैं कि सवर्ण हमेशा एनडीए को समर्थन करते आए हैं। इस बार वे बीजेपी को समर्थन करेंगे, महागठबंधन के लिए सवाल ही पैदा नहीं होता।
[ad_2]
Source link