Home Bihar टी एन शेषण के चलते लालू बने सामाजिक न्याय के ‘मसीहा’! ये वो कहानी है जिसे इन दोनों के अलावा कोई नहीं जानता

टी एन शेषण के चलते लालू बने सामाजिक न्याय के ‘मसीहा’! ये वो कहानी है जिसे इन दोनों के अलावा कोई नहीं जानता

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टी एन शेषण के चलते लालू बने सामाजिक न्याय के ‘मसीहा’! ये वो कहानी है जिसे इन दोनों के अलावा कोई नहीं जानता

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पटना: इसमें कोई शक नहीं कि टीएन शेषण चुनाव सुधार के नायक रहे हैं। के एस जोसेफ की अध्यक्षता में पांच जजों वाली संविधान पीठ ने यूं ही नहीं कह दिया कि देश को ऐसे मुख्य निर्वाचन आयुक्त चाहिए जो सरकार की कठपुतली न हों। जो टी एन शेषण की तरह बेखौफ हों, चुनाव सुधारों को लागू करें। बिहार में स्वच्छ चुनाव कराना भी ऐसा ही अप्रत्याशित और एक हद तक असंभव सा काम था। लेकिन टीएन शेषन ने ऐसा कर दिखाया। लोगों को उस वक्त पता चला कि चुनाव आयोग चीज क्या है, ये वो संस्था है जो चाह ले तो जनता का वोट तो क्या, कोई बूथ पर से एक चप्पल तक न चुरा पाए।

बिहार चुनाव, शेषण और लालू
दरअसल टी एन शेषन का आना उस वक्त हुआ जब बिहार 1980 से लेकर 1990 तक बूथ कैप्चरिंग के अद्भुत नमूनों का सरताज बना हुआ था। यह राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के सामाजिक न्याय के फलने फूलने का समय भी था। पिछड़ा उभार भी सर उठा रहा था। ऐसे में टीएन शेषण वर्ष 1995 में चुनाव सुधार की मंशा लिए आए। बूथ लूट रोकने के लिए सबसे पहले उन्होंने चुनाव को कई चरणों में कराने का निर्णय लिया।सुरक्षा के बंदोबस्त करने के लिए ऐसा किया गया। यहां तक कि चार चरणों में कराए गए चुनाव के लिए कई बार चुनाव की तारीखों में बदलाव भी किया। पारदर्शी चुनाव के लिए केंद्रीय पुलिस बल का इस्तेमाल किया।
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राजद सुप्रीमो इस बात को समझते थे कि बूथ कैप्चरिंग अधिकांश रूप से दबंग लोग करते हैं । उनके वोटर जो दलित पीड़ित हैं उन्हें कहा बूथ कब्जा करने का सामर्थ्य है। बाबजूद लालू प्रसाद ने एक रणनीति के तहत टी एन शेषण को पिछड़ा विरोधी बताते कहा कि चुकी वे ब्राह्मण हैं इसलिए पिछड़ों की सरकार बनने देना नहीं चाहते। उन्हें छुट्टा सांड भी कहा। लालू प्रसाद ने तो यहां तक कह दिया कि ई शेषणवा के भैंशिया पर चढ़ा कर गंगा जी में हेला देंगे। लालू प्रसाद के इस बोली से राज्य के दलित पीड़ित उत्साहित होते गए और सवर्ण इस खुशी में निष्क्रिय हो गए कि शेषन तो है ही।

लालू का शेषण विरोध काम कर गया
दरअसल ,लालू के विरोध को बिहार के सवर्णों ने इस रूप में लिया कि शेषण पिछड़ा विरोधी हैं और वे अपनी तमाम आक्रामकता को ले कर आश्वस्त भी हो गए। लेकिन जब चुनाव हुए तो यह पहली बार हुआ जब पीड़ित, दलित और पिछड़े को वोट डालने का अधिकार प्राप्त हुआ और फिर लालू प्रसाद की बिहार में सरकार बनी। यह टीएन शेषन के प्रयासों का नतीजा था कि दलित पीड़ित पोलिंग बूथ तक पहुंचे और लालू यादव के पक्ष में जमकर वोट डाले गए।
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वरिष्ट पत्रकार अरुण पांडे का कहना है कि लालू प्रसाद अखबार की सुर्खियां पढ़ कर काफी खुश होते जब वे देखते कि अखबारों की हेडिंग बदली हुई है। मसलन, अमुक बूथ पर पहली बार हरिजनों ने डाले वोट या दलित मुहल्ले में आजादी के बाद पहली बार वोट पड़ा। बहरहाल , शेषन की मुहिम चुनाव आचार संहिता को सख्ती से लागू करना था। परंतु उनकी इस सख्ती से लालू का सामाजिक न्याय मजबूत हुआ और यह चुनाव आजादी के बाद दलित और पिछड़ी जाति के सबसे अधिक विधायकों वाला चुनाव साबित हुआ।

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