Home Bihar जल की उपासना का लोकपर्व ‘जुड़ शीतल’ आज, जानिए मिथिला में इसे मनाए जाने की वजह

जल की उपासना का लोकपर्व ‘जुड़ शीतल’ आज, जानिए मिथिला में इसे मनाए जाने की वजह

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जल की उपासना का लोकपर्व ‘जुड़ शीतल’ आज, जानिए मिथिला में इसे मनाए जाने की वजह

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पटना. भारतीय संस्कृति का कैनवास बहुत बड़ा है और हर क्षेत्र की अपनी एक सांस्कृतिक पहचान है. ऐसी ही एक पहचान मिथिला की भी है. मैथिल नववर्ष के रूप आज मिथिला क्षेत्र में शीतलता का लोक पर्व ‘जुड़ शीतल’ मनाया जा रहा है. इसे आखर बोछोर भी कहा जाता है. यह दिन आमतौर पर 15 अप्रैल को ग्रेगोरियन कैलेंडर पर पड़ता है, भारत और नेपाल के मिथिला क्षेत्र में मैथिलों द्वारा मनाया जाता है. इसे निरायण मेष संक्रांति और तिरहुत नववर्ष भी कहा जाता है.

मिथिला के घर-घर में आज भी उत्साह के साथ यह लोकपर्व पूरे परंपरागत तरीके से मनाया जाता है. आज के दिन मिथिला के किसी भी घर में चूल्हा नहीं जलता है और लोग बासी (एक दिन पहले पका हुआ) भोजन करते हैं. ऐसा कहा जाता है कि आज के दिन बासी भोजन खाने से पित्त की बीमारी नहीं होती है. चूल्हा न जलने की एक वजह और भी है, वह यह कि पूरा समाज जल संग्रह के स्थलों जैसे कुआं, तालाब की सफाई में पूरा दिन लगा रहता है. ऐसे में भोजन बनाने का काम दिन में नहीं किया जाता है. खास तौर पर आज के दिन इस मौसम की सब्जी और अनाज से बने बासी दाल पुड़ी, आम की चटनी, कढ़ी-बड़ी, सहजन की सब्जी आदि का सेवन किया जाता है. इन सभी व्यंजनों का सेवन करने के पहले इन्हें घर की छोटी-बड़ी सभी चीजों जैसे कि चूल्हा, दरवाजा, खिड़कियों पर भोग लगाया जाता है.

इसे जुड़ शीतल क्यों कहते हैं

जुड़ शीतल का मतलब होता है शीतलता की प्राप्ति. आज के दिन एक-दूसरे के लिए जीवन भर की शीलतता की कामना की जाती है. जुड़ शीतल का प्रकृति से सीधा संबंध है. यह त्योहार गर्मी के शुरू में मनाई जाती है. पौराणिक कथाओं और वैज्ञानिक साक्ष्यों के अनुसार इस दिन से भीषण गर्मी की शुरुआत होती है, ऐसे में बड़े बुजुर्ग अपने से छोटे लोगों के सिर पर बासी पानी डाल कर ‘जुड़ैल रहु’ का आशीर्वाद देते हैं. उनका मानना है कि इससे पूरी गर्मी सिर ठंडा रहता है. साथ ही मिथिला क्षेत्र में इस दिन संध्या को घर के सभी लोग पेड़-पौधों में जल डालते हैं, जिससे गर्मी के मौसम में भी पेड़-पौधे हरे भरे रहें और वे सूखें नहीं. मिथिला के लोगों का मानना है कि पेड़-पौधे भी उनके परिवार का हिस्सा हैं और वह भी हमारी रक्षा करते हैं. इस दिन लोग घर के हर छोटे बड़े चीजों पर भी बासी जल छिड़कते हैं और ये उम्मीद करते हैं कि घर में सभी कुछ जुड़ा रहे, बना रहे.

जुड़ शीतल में सतुआइन का महत्व

मिथिला में सत्तू और बेसन की नई पैदावार इसी समय होती है. इस पर्व में इसका बड़ा महत्व है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो इसके इस्तेमाल से बने व्यंजन को अधिक समय तक बिना खराब हुए रखा जा सकता है, जिससे खाना बर्बाद न हो. आमतौर पर गर्मी के कारण खाने-पीने के व्यंजन जल्दी खराब हो जाते हैं. इससे बचने के लिए मिथिला क्षेत्र के लोग गर्मी सीज़न में सत्तू और बेसन का इस्तेमाल अधिक करते हैं. जुड़ शीतल त्योहार में सतुआइन के अगले दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है. ऐसे में सतुआइन के दिन अगले दिन का भी खाना तैयार किया जाता है. अगले दिन चूल्हा न जलने पर लोग सत्तू और बेसन से बना बासी खाना ही खाते हैं. ऐसा माना जाता है कि सत्तू और बेसन से बने बासी खाना खाने से पित्त की बीमारी नहीं होती.

जुड़ शीतल और प्रकृति

पिछले कुछ दशकों में आधुनिकीकरण के कारण ग्लोबल वार्मिंग जैसी चीजें बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में पर्यावरण को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक हो गया है. जुड़ शीतल त्योहार मुख्य रूप से प्रकृति से जुड़ा हुआ है. यह जरूरी है कि आज मिथिला क्षेत्र में प्रकृति पूजन की इस विधि को बढ़ावा दिया जाए और इसका प्रचार-प्रसार किया जाए. आज मिथिला क्षेत्र के अलावा अन्य जगहों के लोगों को भी वर्षों पुरानी इस परंपरा के बारे में अधिक जानकारी नहीं है. ग्लोबल वार्मिंग के इस बढ़ते खतरे के बीच जुड़ शीतल जैसे त्योहार हमें प्रकृति के प्रति प्रेम, सद्भाव और संरक्षण की प्रेरणा देता है. लोगों को जागरूक कर न सिर्फ आज बल्कि आगे आने वाली पीढ़ियों को भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बेहतर विकल्प दिया जा सकता है.

आपके शहर से (पटना)

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