Home Bihar ‘चिरैन के जान जाए…लईका के खेलवाना’, जानिए पीएम पद की दौड़ में शामिल नीतीश कुमार को लालू क्यों पुकार रहे थे

‘चिरैन के जान जाए…लईका के खेलवाना’, जानिए पीएम पद की दौड़ में शामिल नीतीश कुमार को लालू क्यों पुकार रहे थे

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‘चिरैन के जान जाए…लईका के खेलवाना’, जानिए पीएम पद की दौड़ में शामिल नीतीश कुमार को लालू क्यों पुकार रहे थे

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पटना: नीतीश कुमार को पीएम उम्मीदवार बनने के लिए लालू ललकार रहे। जगदानंद पीएम बन जाने की गारंटी दे रहे। लेकिन कड़वा सच यही है कि विपक्ष में नीतीश कुमार को कोई पूछ ही नहीं रहा। यह उनके लिए बड़ी मुसीबत है। इतना ही नहीं, सच कहें तो उनके सामने संकटों का पहाड़ खड़ा दिख रहा है। आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह अपने नेता की चेतावनी और पार्टी के शो काज की परवाह किय बगैर नीतीश पर अपने हमले जारी रखे हुए हैं। अपनी ही पार्टी के उपेंद्र कुशवाहा नीतीश को कोस रहे हैं। उनके खिलाफ सुधाकर सिंह से कहीं अधिक मुखर होकर बोल रहे हैं। आरसीपी सिंह जैसे भरोसेमंद स्वजातीय साथी का साथ भी अब नीतीश को मिलने की उम्मीद नहीं। आरसीपी भी उनकी जड़ खोदने में लगे हैं। आईएस शोभा अहोतकर और विकास वैभव सांढ़-भैंसे के तेवर में शालीन लड़ाई लड़ रहे हैं। नीतीश मंत्रिमंडल के कुछ मंत्री उनकी पसंद और सिद्धांत का ख्याल किये बगैर बोल रहे हैं। कोई हिन्दुओं तो कोई सवर्णों को उकसा रहा है।

लालू ने कहा था- नीतीश दिल्ली की राजनीति करेंगे

आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में जाने के बाद नीतीश का अपना लव-कुश समीकरण बिखर गया है। दलित-पिछड़ों और मुस्लिम वोटों पर उनकी पकड़ तो पहले से ही ढीली हो गयी है। एक लाइन का निष्कर्ष यही है कि नीतीश फिलहाल चौतरफा संकट से घिर गये हैं। उन्हें सूझ नहीं रहा कि वे करें तो क्या करें। महागठबंधन का साथी बनने के बाद लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि नीतीश अब दिल्ली की राजनीति करेंगे। वे बिहार से निकल कर विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम में लगेंगे। जेडीयू के केसी त्यागी जैसे नेता भी नीतीश को पीएम मटेरियल बताते रहे। नीतीश सुगबुगाये भी, लेकिन किडनी ट्रांसप्लांट के लिए लालू के सिंगापुर जाते ही वे देश का दौरा भूल गये। बिहार में समाधान यात्रा पर निकल गये। अब लालू लौट आए हैं। जाहिर है कि नीतीश पर राष्ट्रीय राजनीति के लिए लालू का दबाव भी बढ़ा ही होगा। महागठबंधन में हर मर्ज की दवा लालू ही हैं। अब भी लालू सुप्रीमो की तरह ही ट्रीट करते हैं। इसलिए नीतीश के सामने अब अपनी राह बदलने की मजबूरी है।

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कुशवाहा और आरसीपी बिगाड़ रहे लव-कुश समीकरण

इधर जेडीयू में बगावत करने वाले उपेंद्र कुशवाहा और पार्टी से निष्कासित आरसीपी सिंह तीन दशक पहले नीतीश के बनाये लव-कुश समीकरण को छिन्न-भिन्न करने में लगे हैं। कुशवाहा ने पार्टी के समान सोच वाले नेताओं-कार्यकर्ताओं को नीतीश के खिलाफ गोलबंद करना शुरू किया है। आज (19 फरवरी) और कल (20 फरवरी) दो दिनों तक ऐसे नेताओं के साथ कुशवाहा बैठक कर रहे हैं। कुशवाहा का आरोप है कि नीतीश कुमार और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह की वजह से पार्टी कमजोर हो रही है। नीतीश अपनी पार्टी के बजाय आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव को प्रमोट कर रहे हैं। 1994 में पटना के गांधी मैदान में कुर्मी रैली से नीतीश कुमार का राजनीति में उत्थान शुरू हुआ था। उसी रैली में कुर्मी-कोइरी के 16 प्रतिशत वोट साधने के लिए लव-कुश समीकरण बना, जो अब तक बरकरार था। कुशवाहा के बिदकने से कोइरी वोटों पर नीतीश की पकड़ ढीली होगी, इसमें कोई शक नहीं। कुर्मी जाति से आने वाले आरसीपी सिंह अपने प्रति अन्याय का बदला लेने के लिए पहले से ही मैदान में हैं। यानी नीतीश कुमार के लव-कुश समीकरण का ताना-बाना बिखरता दिख रहा है।

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नीतीश को पचा नहीं पा रहे सुधाकर सिंह जैसे नेता

नीतीश महागठबंधन के साथ भले आ गये हैं और आरजेडी की कृपा से अब भी सीएम बने हुए हैं, लेकिन सच यह है कि सुधाकर सिंह, चंद्रशेखर यादव जैसे नेता उन्हें पचा नहीं पा रहे। तभी तो बार-बार चेतावनी के बावजूद आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह नीतीश के खिलाफ विष वमन कर रहे हैं। भिखमंगा, शिखंडी, नपुंसक जैसे विशेषणों से नवाजने के बाद सुधाकर अब नीतीश को आमने-सामने की चुनौती देने लगे हैं। नीतीश के मना करने के बावजूद चंद्रशेखर रामचरित मानस और मनुस्मृति पर अपनी ऊटपटांग बयानबाजी जारी रखे हुए हैं। नीतीश के एक मंत्री ने तो बीजेपी के बहाने सेना पर भी सवाल उठा दिया। नीतीश इस तरह की बयानबाजी रोकने में नाकाम रहे हैं। इस बीच बिहार में पदस्थापित दो आईपीएस शोभा अहोतकर और लिकास वैभव की लड़ाई जारी है। दोनों एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी में लगे हैं। सरकार मूक होकर देख रही है। जातीय हिंसा फिर से सिर उठाने लगी है। सारण में हुए जातीय हिंसा की भनक लालू को लगी तो उन्होंने इसे शांत कराने के लिए दिल्ली से फोन किया, लेकिन नीतीश कुमार के होंठ अब तक सिले हुए हैं। इससे यही जाहिर होता है कि नीतीश कुमार भारी दबाव में हैं। उन्हें सूझ नहीं रहा कि करना क्या है।
रिपोर्ट- ओमप्रकाश अश्क

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