Home Bihar खिसकते जनाधार की चिंता या कोई बड़ा प्लान? देश का दौरा भूले नीतीश, नए साल में अब घूमेंगे बिहार

खिसकते जनाधार की चिंता या कोई बड़ा प्लान? देश का दौरा भूले नीतीश, नए साल में अब घूमेंगे बिहार

0
खिसकते जनाधार की चिंता या कोई बड़ा प्लान? देश का दौरा भूले नीतीश, नए साल में अब घूमेंगे बिहार

[ad_1]

पटना: बिहार में महागठबंधन की सरकार भले चल रही है, लेकिन सभी साझीदार अपने वजूद को मजबूत बनाने के प्रयास में जुटे हुए हैं। वो अलग-अलग इस कवायद को अमलीजामा पहना रहे हैं। तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने हाल ही में पार्टी के विधायकों-पार्षदों और दूसरे आला नेताओं के साथ बैठक की। इसमें उन्होंने यह स्पष्ट निर्देश दिया कि जनाधार बढ़ाना जरूरी है। सभी लोग तन-मन से इस काम में जुट जाएं। इसके तुरंत बाद यह खबर आई कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) नए साल में एक बार फिर बिहार का दौरा करने वाले हैं। हालांकि पहले जैसा उन्होंने ऐलान किया था, उस हिसाब से उन्हें देश के दौरे पर निकलना था। वे बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने की तैयारी में थे। इसकी भूमिका बतौर उन्होंने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, केसी राव, सीताराम येचुरी समेत कई नेताओं से पहले ही मुलाकात कर ली थी।

आरजेडी से उनकी नजदीकी का आलम यह था कि भाजपा का पुराना साथ भी छोड़ दिया। राजद की मदद से उन्होंने न सिर्फ बिहार में सरकार बनाई, बल्कि दबी-जुबान एक दल और एक चुनाव चिह्न की बात कह कर उन्होंने जेडीयू और आरजेडी के विलय का भी संकेत दे दिया। हड़बड़ी का आलम यह कि उन्होंने आरजेडी नेता और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को अपना उत्तराधिकारी तक घोषित कर दिया। उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं ने जब इसे आत्मघाती कदम बताया तो नीतीश आदतन पलट गए और विलय की बात से इनकार कर दिया।

नीतीश कुमार को सता रही खिसकते जनाधार की चिंता

दरअसल, नीतीश कुमार को अपने खिसकते जनाधार की चिंता सता रही है। 2005 में पहली बार सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार की छवि सुशासन बाबू की बन गई। 139 सीटों पर चुनाव लड़ने वाले जेडीयू का वोट शेयर 20.46 फीसदी था। हालांकि, 175 सीटों पर लड़ने वाले आरजेडी को जेडीयू से अधिक 23.45 फीसद वोट मिले थे। 203 सीटों पर उम्मीदवार उतारने वाली एलजेपी का वोट शेयर 11.10 फीसदी था। इधर 2005 से 2015 के बीच भाजपा ने 102 से 157 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसका वोट शेयर 10.97 से बढ़ कर 24.42 फीसदी तक पहुंच गया। 2020 में बीजेपी और जेडीयू का वोट शेयर तो घटा, लेकिन भाजपा को पहले के मुकाबले अधिक सीटों पर जीत मिली। 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 24.42 फीसदी वोट जरूर मिले थे, लेकिन सीटें महज 53 ही हाथ में आईं। 2020 में जेडीयू का वोट शेयर 43 सीटों के साथ 15.39 फीसदी रहा। बीजेपी 19.46 फीसदी वोट शेयर के साथ 77 सीटें जीतने में कामयाब रही। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि जेडीयू के वोट शेयर में जो कमी आई, उसका फायदा भाजपा को मिला।

नीतीश कुमार की तुष्टीकरण वाली पॉलिटिक्स, क्या लालू यादव से वोट छीन पाएंगे

वोटर जाएं तो जाएं किधर

आरजेडी और जेडीयू के अलग अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा संकट यह है कि दोनों का जनाधार एक ही है। बीजेपी के साथ रहने पर सवर्ण वोटर जेडीयू के साथ रहते आए हैं, लेकिन अलग होने पर सवर्ण वोटर किनारा कर लेते हैं। आरजेडी के ही वोट बैंक में सेंध लगा कर नीतीश कुमार ने अपना वोट बैंक तैयार किया था। जैसे आरजेडी के पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए नीतीश कुमार ने पिछड़े मुसलमानों पसमांदा को खड़ा कर दिया। दलितों में सेंध लगाने के लिए दलित और महादलित का खांका बना दिया। कभी दलित, पिछड़े और मुसलमान वोट आरजेडी के ही होते थे, जिनके सहारे 15 साल तक लालू-राबड़ी का शासन चला।

नीतीश ने विधायकों के साथ बैठक में दिया खास प्लानिंग पर काम करने का निर्देश, बिहार में AIMIM से डरा महागठबंधन

आरजेडी-जेडीयू का एक ही जनाधार

जब नीतीश ने नई तरकीब निकाली तो मुस्लिम और दलित-पिछड़े वोटर उनकी ओर आकर्षित हुए। लेकिन कड़वी सच्चाई है कि ये आरजेडी के पारंपरिक वोटर थे। अब अगर दोनों दल अलग पहचान के साथ चुनाव मैदान में उतरेंगे तो यकीनन नीतीश का वोट बैंक उनके मुकाबले आरजेडी को ही तरजीह देगा। ऐसा नहीं कि नीतीश इस सच्चाई से अनजान हैं। यही वजह रही होगी कि उन्होंने एक दल और एक चुनाव चिह्न की बात उठाई। वैसे भी 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश किसी मुसलिम उम्मीदवार को नहीं जिता सके थे। ऐसा इसलिए भी हुआ होगा कि मुस्लिम वोटरों को नीतीश का बीजेपी का साथ पसंद नहीं आया हो। दूसरा कि मुस्लिम वोटरों को नीतीश की पाला बदल नीति भी रास नहीं आ रही। वे कब भाजपा के साथ सटेंगे और कब हटेंगे, यह समझ पाना जब उनके दल के आला नेताओं को ही समझ में नहीं आता तो वोटर कैसे भरोसा कर पाएंगे।

अपने-पराये की एक ही पुकार…गद्दी छोड़ें नीतीश कुमार, जानिए कैसे लाचारगी के भंवर में फंसी मुख्यमंत्री की नैया

ओवैसी की AIMIM ने बढ़ाई आरजेडी-जेडीयू की चिंता

इस बीच ओवैसी की एंट्री ने इन दोनों दलों की चिंता बढ़ा दी है। 2020 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की जीत ने दोनों दलों की चिंता बढ़ा दी है। यह अलग बात है कि आरजेडी ने उनके विधायकों को बाद में अपने पाले में कर लिया, लेकिन गोपालगंज और कुढ़नी विधानसभा के हालिया उपचुनावों से एक बात साफ हो गई है। ओवैसी की पार्टी को कमतर आंकना इन दलों की भूल होगी। उनके उम्मीदवार भले न जीत पाएं, लेकिन बाकी को हराने में ओवैसी की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए जितना ओवैसी से चौकन्ना आरजेडी है, उससे यकीनन नीतीश कुमार भी कम चिंतित नहीं होंगे।
(ओमप्रकाश अश्क वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक मामलों के जानकार हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं)

[ad_2]

Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here