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BJP politics on Caste Census : देर से ही सही, अब ये साफ हो गया है कि बिहार में जातीय जनगणना होगी। बुधवार को सर्वदलीय बैठक में सभी दलों ने जाति आधारित जनगणना कराए जाने के प्रस्ताव को मंजूर किया। उम्मीद है कि जल्द ही कैबिनेट से प्रस्ताव को पास कराकर बिहार में जाति आधारित जनगणना कराई जाएगी। ऐसे में सवाल उठता है कि पहले हां… बाद में ना करने वाली बीजेपी फिर तैयार क्यों हुई।
हाइलाइट्स
- बिहार में होगी जातीय जनगणना
- केन्द्र में ना करने वाली बीजेपी बिहार में क्यों हुई तैयार?
- बीजेपी ने एक बार फिर जाति के साथ धर्म को जोड़ा
- क्या बीजेपी एक तीर से जाति और धर्म को साध रही है?
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा था कि बीजेपी जातीय जनगणना का विरोध नहीं करती है, लेकिन हमलोग चाहते हैं कि सभी धर्म और जाति के लोगों की गणना हो। आगे उन्होंने कहा था कि मैं जातीय जनगणना के साथ खड़ा हूं, लेकिन इसमें मुसलमानों को भी जाति की श्रेणी में रखना चाहिए, क्योंकि ये लोग भी फायदा उठाते हैं। उन्होंने कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को जातिगत जनगणना से दूर रखना चाहिए।
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बीजेपी की सियासत को समझिए
दरअसल, बीजेपी की राजनीति धर्म पर केन्द्रित होती है। चाहे वो केन्द्र वो हो या राज्य में, एजेंडा इसी-इर्द-गिर्द घूमता है। वहीं, जेडीयू-आरजेडी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों की सियासत समाज में उनकी हिस्सेदारी पर ही होती है। ये अलग बात है कि समय-समय पर वोटों का ध्रुवीकरण कर किसी खास तबके के वोट को वे दल समेटते रहते हैं। क्षेत्रीय दल जातियों की अस्मिता से जुड़कर राजनीति करते हैं। यही कारण है कि वे हर बार दोहराते रहते हैं कि समाज में उनकी दावेदारी मजबूत है, इसी लिहाज से भागीदारी भी तय करते हैं। लेकिन बीजेपी जाति से हटकर सियासत करती है, उसे पता है दिल्ली के सत्ता में रहना है तो जाति नहीं धर्म की सियासत करनी होगी।
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हां… ना फिर हां… आखिर क्यों?
ऐसे में फिर सवाल उठता है कि बिहार विधानमंडल में जातिगत जनगणना कराने की मांग के प्रस्ताव को समर्थन देने के बाद बीजेपी ने आखिर यू-टर्न क्यों ले ली थी? इसके लिए हमें राजनीतिक दलों के सियासी चरित्र को समझना होगा। यह भी समझना होगा कि बीजेपी हो या क्षेत्रीय दल, वे किस प्रकार की राजनीति करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, बिहार में 26 फीसदी ओबीसी और 26 फीसदी ईबीसी का वोट बैंक है। ओबीसी में बड़ा हिस्सा यादवों का है जो 16 फीसदी के करीब है। यादवों को आरजेडी का परंपरागत वोट बैंक समझा जाता है। इसके अलावा ओबीसी में 8 फीसदी कुशवाहा और 4 फीसदी कुर्मी वोट बैंक है। इन दोनों पर नीतीश कुमार का प्रभाव माना जाता है। 16 फीसदी वोट बैंक मुस्लिमों का है।
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वहीं, बिहार में अति पिछड़ी जाति के मतदाताओं का हिस्सा 26 फीसदी के करीब है। दलितों का वोट प्रतिशत 16 फीसदी के करीब है। इनमें पांच फीसदी के करीब पासवान हैं बाकी महादलित जातियां ( पासी, रविदास, धोबी, चमार, राजवंशी, मुसहर, डोम आदि ) आती हैं। जिनका करीब 11 फीसदी वोट बैंक है। करीब 19 फीसदी वोट बैंक उच्च जातियों ( भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ ) का है।
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बिहार में सत्ता में रहना है तो साथ चाहिए
बीजेपी जानती है कि भले ही वह केंद्र में अपने दम पर सत्ता में है! लेकिन बिहार में सत्ता में बने रहने के लिए साथ चाहिए। अगर बिहार में वो ‘जाति’ के मुद्दे पर नीतीश के साथ नहीं देती है तो हो सकता है नीतीश कुमार एक बार फिर ‘पलटी’ मार जाएं। ऐसे में बीजेपी ने जाति के मुद्दे पर ना-ना करते हां कर दी और संदेश भी दे दिया जाति जनगणना से दिक्कत नहीं है। वहीं गिरिराज से बयान दिलवाकर ये भी बता दिया कि बिहार में जाति की सियासत में आना उसकी जरूरी नहीं, सत्ता के लिए मजबूरी है।
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