Home Bihar कुढ़नी उपचुनाव में अंतिम समय में झटका देंगे इस पंचायत के वोटर? जिसका चाहे, उसका बिगाड़ सकते हैं खेल

कुढ़नी उपचुनाव में अंतिम समय में झटका देंगे इस पंचायत के वोटर? जिसका चाहे, उसका बिगाड़ सकते हैं खेल

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कुढ़नी उपचुनाव में अंतिम समय में झटका देंगे इस पंचायत के वोटर? जिसका चाहे, उसका बिगाड़ सकते हैं खेल

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पटना : बिहार के कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव के बीच से एक बड़ी खबर निकल कर सामने आ रही है। विधानसभा क्षेत्र में एक पंचायत की जनता काफी सजग है। पूरा पंचायत काफी सोच-समझकर प्रत्याशियों को वोट देता है। कहा जा रहा है कि इस पंचायत के लोग किसी का भी खेल खराब कर सकते हैं। इस पंचायत में सभी जागरूक मतदाता हैं। इनकी ओर से किसी को वोट देने से पहले उस प्रत्याशी के बारे में पता लगाया जाता है। जांचा-परखा जाता है। तब ये लोग जाकर वोट देते हैं। इस पंचायत के लोगों के जागरूकता पर हम आगे बात करेंगे। सबसे पहले हम पिछले चुनाव परिणामों के इतिहास पर नजर डालते हैं।

चुनाव में ‘नोटा’ इफेक्ट

कुढ़नी में वर्ष 2005 में विधानसभा का चुनाव परिणाम काफी दिलचस्प रहा था। इस चुनाव में एनडीए की ओर से जेडीयू कोटे से अश्वमेघ देवी चुनाव लड़ी थीं। राजद की ओर से अशोक कुमार वर्मा मैदान में थे। अशोक कुमार वर्मा को कुल 36 प्रतिशन यानी 36,848 वोट मिले। अशोक प्रसाद वर्मा 4 हजार 445 वोटों से चुनाव जीत गए। वहीं अश्वमेघ देवी को 33 हजार 495 वोट मिले, जो 33 प्रतिशत थे। 2010 में लोजपा से विजेंद्र चौधरी ने चुनाव लड़ा। उन्हें 35,187 वोट मिले, यानी कुल 27 प्रतिशत वोट विजेंद्र चौधरी को मिले। जीत जेडीयू उम्मीदवार मनोज कुमार सिंह उर्फ मनोज कुशवाहा की हुई। उन्हें 27 प्रतिशत के साथ कुल 36 हजार 757 वोट मिले। जेडीयू उम्मीदवार 1570 वोटों से चुनाव जीत गए। 2015 जेडीयू उम्मीदवार मनोज कुमार सिंह उर्फ मनोज कुशवाहा को 36 प्रतिशत के साथ 61 हजार 657 वोट मिले। वहीं बीजेपी के केदार प्रसाद गुप्ता को 73 हजार 227 वोट मिले। केदार प्रसाद गुप्ता 11 हजार 570 वोटों से चुनाव जीते। 2020 के चुनाव में बीजेपी के केदार गुप्ता दूसरे स्थान पर रहे, उन्हें 77 हजार 837 वोट मिले, जो 39.86 प्रतिशत थे। जबकि, जीत राजद के अनिल कुमार सहनी को मिली। अनिल को 78 हजार 549 वोट मिले और प्रतिशत 40.23 रहा। अनिल कुमार सहनी को जीत महज 712 वोटों से मिली।

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पूर्व के परिणाम

आपने 2005 से कुढ़नी विधानसभा में हुए चुनाव के परिणाम देखे। इन परिणामों में आपने एक बात पर गौर किया होगा। 2005 और 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में जीत के अंतर में गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि, 2015 में केदार प्रसाद गुप्ता को 11 हजार 570 वोट मिले। 2020 में जीत का ये अंतर सिमटकर मात्र 712 पर आ जाता है। इसके पीछे के कारणों पर ध्यान देंगे, तो कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र का वही पंचायत सामने आएगा, जिसने इस अंतर को एकदम कम कर दिया है। कुढ़नी विधानसभा चुनाव को करीब से देखने वाले एक पत्रकार कहते हैं कि इस क्षेत्र में एक हरिशंकर मनियारी पंचायत है। उस पंचायत के लोगों ने 2020 के विधानसभा चुनाव में ऐलान कर दिया था कि उनकी पसंद का कोई प्रत्याशी नहीं है। इसलिए वे मतदान केंद्र पर जाएंगे जरूर, लेकिन नोटा दबाकर आएंगे। पंचायत के लोगों ने पार्टियों को चेतावनी दी थी कि विधानसभा क्षेत्र में कोई प्रत्याशी अपने दावे पर खरा उतरने वाला नहीं है।

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हरिशंकर मनियारी पंचायत की कहानी

वोटिंग के दिन हरिशंकर मनियारी पंचायत के सभी लोग मतदान केंद्रों पर गए, लेकिन उन्होंने वोट देने की जगह ‘नोटा’ दबा दिया। हरिशंकर मनियारी पंचायत से कुल 700 लोगों ने नोटा का बटन दबाया। जीत का अंतर महज 712 रहा। अब आप समझ सकते हैं कि हरिशंकर मनियारी पंचायत के लोग कहीं इस बार भी वहीं खेल ना कर दें। स्थानीय सियासी जानकार मानते हैं कि अभी तक हरिशंकर मनियारी पंचायत में ज्यादा नेता कैंपेन करने नहीं गए हैं। पंचायत के लोगों की एकजुटता से सभी पार्टियों को डर लग रहा है। वहीं, पंचायत के निवासी कहते हैं कि इस बार भी वे ‘नोटा’ दबाएंगे, ऐसा नहीं है। पहले वे लोग पार्टियों के वादे और प्रत्याशियों के वादे को ध्यान से सुन रहे हैं। उसके बाद पूरी पंचायत बैठकर फैसला लेगी, फिर मतदान किया जाएगा। उधर, सियासी जानकार कहते हैं कि यदि ‘नोटा’ दबाने वालों की संख्या बढ़ती है, तो जीत का मार्जिन और कम हो जाएगा। ऐसे में महज चंद वोट से ही कोई उम्मीदवार जीत पाएगा।

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ग्रामीण सोच-समझकर देते हैं वोट

हरिशंकर मनियारी पंचायत के गजपति गांव के ग्रामीण कहते हैं कि इलाके का कोई विकास नहीं हुआ है। यहां मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। गांव के मुस्लिम समुदाय के वोटर कहते हैं कि गांव में कोई विकास का काम आज तक नहीं हुआ है। जनप्रतिनिधि हर बार कहते हैं कि गांव में बिजली और यातायात की व्यवस्था को ठीक कर दिया जाएगा। गांव के गरीबों को सरकार की कल्याणकारी योजना का लाभ दिया जाएगा। ऐसा होता नहीं है। प्रखंड स्तर पर भ्रष्टाचार का आलम ऐसा है कि एक सर्टिफिकेट बनवाने जाइए उसके लिए भी घूस देना पड़ता है। जानकार कहते हैं कि हरिशंकर मनियारी पंचायत की जनता के मूड का कोई ठिकाना नहीं है। ये लोग अंतिम समय में फैसला लेते हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में एक साथ सात सौ लोगों ने ‘नोटा’ दबाकर ये बता दिया कि इनके मन माफिक कोई काम नहीं होगा, तो ये अपना बटन ‘नोटा’ पर ही दबाएंगे। जानकार मानते हैं कि पंचायत के गांवों में आज भी मूलभूत सुविधा का अभाव है। जिससे ग्रामीण नाराज रहते हैं।

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‘नोटा’ का डर

नोटा का मतलब ‘नान ऑफ द एबव’ यानी इनमें से कोई नहीं है। ये ऑप्सन ईवीएम मशीन में होता है। ये विकल्प मतदाता दबा सकते हैं। इसी विकल्प को नोटा कहते हैं। इसे दबाने का मतलब यह है कि आपको चुनाव लड़ रहे कैंडिडेट में से कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है। ईवीएम मशीन में इनमें से कोई नहीं या नोटा का बटन गुलाबी रंग का होता है। आपको बता दें कि भारतीय निर्वाचन आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में इनमें से कोई नहीं या नोटा बटन का विकल्प उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। वोटों की गिनती की समय नोटा पर डाले गए वोट को भी गिना जाता है। नोटा में कितने लोगों ने वोट किया, इसका भी आंकलन किया जाता है। वोटरों को नोटा के बारे में बखूबी पता है। 2020 में हरिशंकर मनियारी पंचायत के लोगों ने इसी विकल्प का इस्तेमाल करते हुए कई प्रत्याशियों की नींद उड़ा दी थी। इस बार के उपचुनाव में भी आशंका जताई जा रही है कि हरिशंकर मनियारी पंचायत की जनता ऐसा कुछ कर सकती है।

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