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Bihar Political News in Hindi : बिहार की राजनीति में एक बात तो तय ही मानी जाती है कि बनते बनते खेल आखिर में बिगड़ जाता है। माना जा रहा है कि उपेंद्र कुशवाहा के साथ ऐसा ही कुछ हुआ। महागठबंधन सरकार बनते वक्त भी उनके मंत्री बनाए जाने की चर्चा थी। लेकिन तब भी ऐसा ही हुआ था।
आखिर क्या थी कुशवाहा से दूरी की मजबूरी?
दरअसल उपेंद्र कुशवाहा को उप मुख्यमंत्री नहीं बनाने की एक बड़ी वजह जनता दल यूनाइटेड के विधायकों की संख्या भी रही होगी। बिहार विधानसभा में राजद के विधायकों की संख्या जहां 79 है वहीं जनता दल यू के विधायकों की संख्या मात्र 43 ही है। वैसे में कम विधायकों वाली पार्टी से मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री का गणित ठीक नहीं। सात दलों के महागठबंधन के भीतर संदेश अच्छा नहीं जाता। राजद का आंतरिक लोकतंत्र भी गड़बड़ा सकता था। राजद के भीतर तब एक दबाव पूर्ण राजनीति विकसित होने की आशंका थी। इसलिए भी उपेंद्र कुशवाहा का उप मुख्यमंत्री फिलहाल बनना संभव नहीं था। हां, अगर नीतीश कुमार अपनी कुर्सी तेजस्वी को सौंपते तो वे उपेंद्र कुशवाहा या फिर किसी और के लिए उप मुख्यमंत्री पद मांग सकते थे।
तेजस्वी भी नहीं चाहते ?
जहां तक राज्य की वर्तमान राजनीति का तकाजा है तो इस माहौल में तेजस्वी कदापि नहीं चाहेंगे कि उनके बराबर आकर उपेंद्र कुशवाहा उप मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालें। ऐसा इसलिए कि यादव का बाद सबसे ज्यादा वोट कुशवाहा का है। इनको मजबूत करना यादवी ताकत के विरुद्ध खड़ा करने जैसा है।
जदयू किसी और बवाल के लिए तैयार नहीं
जनता दल यू के भीतरी लोकतंत्र की बात करें तो पार्टी खुद अंतरद्वन्द से जूझ रही है। खासकर तब से जब नीतीश कुमार ने 2025 का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ने की बात कही। आमतौर पर ऐसा होता है कि पार्टी जब नेतृत्व बदलना चाहती है तो वह अपने पार्टी के भीतर ही किसी सर्वमान्य नेता को आगे लाना चाहती है। पर नीतीश कुमार ने ऐसा नहीं किया। अब उस पर उपेंद्र कुशवाहा को उप मुख्यमंत्री बनाने की बात पर भी पार्टी के भीतर फिर एक नया घमासान होता। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह से उपेंद्र कुशवाहा की कुछ खास बनती भी नहीं। इसलिए भी नीतीश कुमार के लिए यह निर्णय शायद ठीक नहीं था।
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