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अगड़ा-पिछड़ा राजनीति से तेजस्वी परहेज कर चुके, मगर लालू की लाइन पर बिहार के शिक्षामंत्री।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
बिहार में जातिगत जनगणना की मांग राष्ट्रीय जनता दल की थी। इस तरह की जनगणना के लिए केंद्र सरकार तैयार नहीं हुई तो बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने खुद शुरुआत करा दी। अभी मकानों की गिनती हो रही है, इसलिए विरोध धीमा है। अप्रैल में जब जाति पूछी जाएगी तो कुछ न कुछ माहौल गरमाएगा ही। इस गरमी में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद का पुराना कार्ड ‘बैकवर्ड-फॉरवर्ड’ जरूरत खेला जाएगा। राजद कोटे से बिहार के शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर उसी स्टैंड पर हैं, बस सहारा उन्होंने रामचरित मानस का लिया है। चंद्रशेखर ने मीडिया में ही बैकवर्ड-फॉरवर्ड नहीं किया, बल्कि इससे पहले बच्चों के बीच दीक्षांत समारोह का उनका पूरा भाषण भी इसी पर केंद्रित रहा। चंद्रशेखर ने कब, क्या कहा…नीतीश यह जान गए होंगे, संभवत: इसलिए कुछ बोल नहीं रहे। लेकिन, माना जा रहा है कि वोट बंटने के डर से जैसे तेजस्वी ने बैकवर्ड-फॉरवर्ड से पल्ला झाड़ा था, नीतीश कुमार के कहने पर चंद्रशेखर को भी शांत होना पड़ेगा। जदयू से इसके संकेत मिलने भी लगे हैं। जदयू नेता निखिल मंडल ने सोशल मीडिया पर प्रो. चंद्रशेखर के खिलाफ चल रही बातों के समर्थन में उतरते हुए लिखा- “गठबंधन धर्म का सम्मान करते हुए कहना चाहता हूं कि शिक्षा मंत्री को अविलंब यह बयान वापस लेकर माफी मांगनी चाहिए।”
बच्चों के बीच- रामचरिमानस की विचारधारा से भारत आगे नहीं बढ़ सकेगा
नालंदा खुला विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह से निकलकर अचानक प्रो. चंद्रशेखर को कुछ बोलने का मन किया। वह बोलने लगे- “क्या शिक्षा से भारत को ताकतवर बना सकते हैं या मूर्खता से? और इस देश में एक ऐसे विचार चलते हैं, जो नागपुर से उठते हैं। जो कहता है कि शिक्षा से अहंकार बढ़ता है।….इस देश में नफरतवाद फैलाने में लगा हुआ है। ये बात आज की नहीं है। आज से कोई तीन हजार साल पहले मनुस्मृति लिखी गई और आपको मालूम है कि मनुस्मृति को ज्ञान के प्रतीक बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने क्यों जलाया? गूगल पर आप देखेंगे तो पाएंगे कि मनुस्मृति में वंचितों और वंचितों के साथ-साथ नारियों को शिक्षा से अलग रखने की बात कही गई है। शिक्षा का अधिकार, संपत्ति का अधिकार न नारियों को था, न वंचितों को और न शूद्रों को था। उसके बाद पंद्रहवीं-सोलहवीं सदी में रामचरितमानस लिखी गई। तुलसीदास जी ने लिखा। उसके उत्तर कांड में कितनी बात कही गई? पूजिये न पूजिये विप्र शील गुण हीना शुद्र ना गुण गन ज्ञान प्रवीना…अगर ये विचारधार चलेगा तो भारत को ताकतवर बनाने का सपना कभी पूरा नहीं होगा। अगर ज्ञान से प्रवीण बाबा भीमराव अंबेडकर है तो पूजने योग्य नहीं है…यह शिक्षा हमारा एक शास्त्र देता है, जो नफरत बोता है। इसी उत्तरकांड में लिखा हुआ है- जे बरनाधम तेलि कुम्हारा। स्वपच किरात कोल कलवारा।… रामचरित मानस में नीचता का अर्थ इस टॉपिक में लिखा मिल जाएगा। तेली, कुम्हार, कहार, आदिवासी, दलित वगैरह वारी…इसी में आगे लिखा है- अधम जाति में विद्या पाए, भयहु यथा अहि दूध पिलाए।”
फिर मीडिया में बोले- नफरत बांटता है तुलसीदास का रामचरितमानस
दीक्षांत समारोह में बैकवर्ड-फॉरवर्ड करने के बाद शिक्षा मंत्री जब बाहर निकले तो मीडिया से भी ऐसी ही बातें कीं। उन्होंने कहा- “मनुस्मृति को जलाने का क्यों काम किए? इसलिए कि मनुस्मृति में बड़े तबका के खिलाफ, 85 प्रतिशत के लोगों के खिलाफ अनेकों गालियां दी गईं। रामचरित मानस का क्यों विरोध हुआ? किस अंश का प्रतिरोध हुआ? अधम जाति में विद्या पाए, भयहु यथा अहि दूध पिलाए। यानी, अधम मतलब होता है नीच। दुनिया के लोगों सुनो, आपके माध्यम से कहना चाहता हूं। नीच जाति के लोगों को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नहीं था और उसमें कहा गया है कि नीच जाति के लोग शिक्षा ग्रहण करके जहरीला हो जाते हैं, जैसा कि सांप धूप पीने के बाद होता है। मैं इसलिए यह बात करता हूं कि इसी चीज को कोट करके बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने दुनिया के लोगों को बताया कि ये जो ग्रंथ हैं, नफरत को बोने वाले…एक युग में मनुस्मृति, दूसरे युग में रामचरितमानस और तीसरे युग में गुरु गोलवलकर का बंच ऑफ थॉट। ये दुनिया को, हमारे देश को, समाज को नफरत में बांटती है।”
जीभ काटे जाने के एलान का जवाब- शक्तिकरण का मतलब है कि उनको तोड़ें?
रामचरितमानस के खिलाफ प्रो. चंद्रशेखर की बातों पर जब भाजपा और हिंदुवादी संगठनों ने हंगामा शुरू किया तो शिक्षा मंत्री ने कहा कि वह अपनी बात पर कायम हैं। उन्होंने फिर वही बात दुहराई- “संपूर्ण रामचरितमानस के लिए नहीं कही भाईजान! उत्तरकांड, सुंदरकांड में जो छंद हैं- ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी…सकल ताड़णा के अधिकारी। इ कौन गा रहा है? कौन कैसेट बेच रहा है? वही धर्माचार्य लोग कैसेट बेच रहे हैं। ढोल पीटने पर बजेगा। गंवार भी पीटने पर ठीक होंगे। ताड़णा मतलब क्या होता है भइया? ताड़ना मतलब पीटना होता है भइया।” इसपर मीडिया ने सवाल किया कि ताड़ना का मतलब तो उबारना भी होता है। तो, फिर बोलने लगे- “आपके शब्द में हो सकते हैं। यथास्थितिवादी आप यह बताइए कि ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और नारी के अलावा किसी को ताड़ने की जरूरत नहीं है? सशक्तिकरण का मतलब ताड़ें?”
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