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पटना16 मिनट पहले
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पटना में अब हवा में आलू उपज सकती है। केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र ने एरोपोनिक्स प्रणाली से ऐसा कर दिखाया है। इस माध्यम से पौधे को बिना मिट्टी या किसी अन्य माध्यम के उगाते हैं। साथ ही पोषक तत्वों के घोल का धुंध के रूप में निश्चित अंतराल पर जड़ों में छिड़काव किया जाता है। पौधे का ऊपरी भाग हवा और रोशनी में बढ़ता है, जबकि जड़ एवं कंद का भाग नीचे हवा में आलू के रूप में पैदा होता है।
केंद्र के द्वारा इस आधुनिक विधि के इस्तेमाल से होनेवाली फसल खेतों से हुई उपज के मुकाबले कई गुणा ज्यादा होती है। यह चाइनीज तकनीक है जिसे अपनाकर खेती की शुरुआत पटना में कुछ वर्ष पहले की गई थी। यह प्रयोग सफल रहा है। अभी यहां दो यूनिट में एरोपोनिक्स आधारित आलू के बीज उत्पादन की तकनीक अपनाई गई है।
यूनिट में तैयार आलू के पौधे।
बीमारियों से सुरक्षित होते हैं पौधे
केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर शंभू कुमार ने बताया कि इस तकनीक में मिट्टी का थोड़ा भी इस्तेमाल नहीं होता। इस वजह से तैयार किए गए बीज विषाणुमुक्त होते हैं और पौधों में होनेवाले कई तरह की बीमारियों से सुरक्षित होते हैं। बताया कि कंद की पहली कटाई 15 दिन पर कर सकते हैं। इसके लिए ऊपरी पैनल को हाथ से उठाकर कंद को तोड़ कर अलग कर लिया जाता है। इसे भंडारण से पहले 24 से 48 घंटे तक सुखाया जाता है। फिर कोल्ड स्टोर में सुरक्षित रखा जा सकता है।
फसल दिखाते वैज्ञानिक डॉक्टर शंभू कुमार।
तैयारी और रखरखाव महंगा, सावधानी की जरुरत
शंभू कुमार ने बताया कि इस यूनिट को तैयार करने और रखरखाव में काफी खर्च आता है। एरोपोनिक्स चेंबर को तैयार करने के बाद इसमें किसी भी व्यक्ति के अंदर जाने पर काफी सावधानी बरतनी पड़ती है। वजह कि अगर बाहरी आदमी इसमें प्रवेश करता है और उसके साथ किसी भी तरह के कीड़े प्रवेश कर जाते हैं तो उसका असर पौधों पर पड़ना शुरू हो जाता है।
इनपुट: ज्ञान शंकर
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