Home Bihar Bihar Caste Census 4 : श्रीवास्तव, लाला और लाल रह गए कायस्थ…वरना दर्जी के रूप में दर्ज हो जाते

Bihar Caste Census 4 : श्रीवास्तव, लाला और लाल रह गए कायस्थ…वरना दर्जी के रूप में दर्ज हो जाते

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Bihar Caste Census 4 : श्रीवास्तव, लाला और लाल रह गए कायस्थ…वरना दर्जी के रूप में दर्ज हो जाते

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बिहार में जातीय जनगणना
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार

जाति जनगणना में कर्मियों को जातियों के कोड वितरण के बाद श्रीवास्तव, लाला और लाल दर्जी के उपनाम के रूप में दर्ज कर दिया गया था। इसके बाद बिहार सरकार सोशल मीडिया पर ट्रोल होने लगी। कायस्थ समाज के लोगों ने इसका कड़ा विरोध किया। ‘अमर उजाला’ ने इस खबर को प्रमुखता से चलाया। कायस्थ समाज के लोगों की बात को खबर के जरिए सरकार तक पहुंचायी। इसके बाद बिहार सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया और फौरन संशोधन करवाया। अब श्रीवास्तव, लाला और लाल कायस्थ जाति में रहेंगे। उनका कोड 21 नंबर होगा।

दरअसल, जनगणना कर्मियों को जातियों का कोड विवरण जारी किए जाने के बाद सामने आया था। जारी कोड में एक तो कायस्थ जाति के लिए जारी किया गया थ, लेकिन दूसरी जगह एक कोड के तहत हिंदू धर्म के दर्जी के उपनाम के रूप में श्रीवास्तव/ लाला/ लाल/ दर्जी प्रकाशित कर जनगणना कर्मियों को दिया गया था। इसके बाद कायस्थ समाज के लोग सवाल उठाने लगे। वह सरकार से इसमें सुधार की मांग करने लगे।

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कायस्थ जाति बिहार के निर्माण में बड़ा योगदान रहा

चाणक्या इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के निदेशक सुनील कुमार सिन्हा ने कहा, “कलम-दावात की पूजा करने वाले कायस्थ जाति का बिहार के निर्माण में बड़ा योगदान रहा है। कायस्थों में 12 उप-जातियां हैं। ‘श्रीवास्तव’ कायस्थों की एक उप-जाति है। उत्तर प्रदेश और इससे सटे बिहार में इस उप-जाति के कायस्थ सबसे ज्यादा संख्या में हैं। इसके अलावा कायस्थों को ‘लाला’ भी कहा जाता है। लाला का अर्थ हिसाब-किताब संभालने वाले के रूप में लगाया जाता है। कहीं-कहीं कायस्थों के लिए यह प्रमुख टाइटल भी है। इसी तरह ‘लाल’ भी टाइटल है।”

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जाति जनगणना पर सवाल उठाता रहे हैं कायस्थ समाज के लोग

बिहार में जातिगत जनगणना का जाति के लोग विरोध कर रहे हैं। अब सरकार की ओर विकल्पहीन होने के बाद जब जाति जनगणना शुरू हो रही है तो मशहूर साहित्यकार शिवदयाल ने कहा, “आजादी के 75 साल बाद बिहार को करीब 90 साल पीछे धकेलने की कोशिश होनी ही नहीं चाहिए थी। नीति-निर्धारक ही ऐसा कर रहे हैं तो जनता मानने के लिए मजबूर है।

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