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जनता के चहेते हैं महबूब
महबूब आलम किसी राजनीति लाव-लश्कर के शिकार नहीं हैं। साधारण तरीके से रहते हैं। इलाके के लोगों के दुख-सुख में शामिल होते हैं। महबूब अपने विधानसभा क्षेत्र में स्थित गांव शिवानंदपुर में महज आठ सौ वर्ग फीट के मकान में रहते हैं। महबूब आलम 2020 के विधानसभा चुनाव में सुर्खियों में तब आये जब उन्होंने सबसे अधिक मार्जिन से सीट जीत ली। चार बार विधायक रहे महबूब आलम आज तक अपने परिवार के साथ कच्चे मकान में रहते हैं। उनके पास पक्का घर नहीं है। बौद्धिकता में परिपूर्ण महबूब आलम सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर हमेशा बेबाक टिप्पणी करते हैं। विधानसभा परिसर में राष्ट्रीय और राज्यहित के मुद्दों को लेकर हमेशा विरोध प्रदर्शन करते हैं।
टमटम चलाते थे महबूब
महबूब आलम जवानी के दिनों में टमटम चलाते थे। टमटम से उनके पूरे परिवार की रोजी रोटी चलती थी। कटिहार के पुराने पत्रकारों का मानना है कि महबूब के लिए टमटम चलाना काफी फायदेमंद रहा। महबूब का सांगठनिक विकास टमटम यूनियन से जुड़ने के बाद हुआ। महबूब शुरू से ही नेतृत्व करने वाले रहे। वे टमटम चलाने के दौरान यूनियन से जुड़ गये और उनके हक के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया। महबूब को इस यूनियन में राजनीति का पाठ पढ़ने को मिला। महबूब आलम के सियासी सफर की बात करें तो चुनावी राजनीति की शुरुआत 1985 से हुई। महबूब आलम सीपीआई (एम) के प्रत्याशी के तौर पर बारसोई विधानसभा से चुनाव लड़े। वे दूसरे स्थान पर रहे। कुछ अंतराल के बाद आपसी विवाद में पार्टी छोड़ दी। उसके बाद 1990 में सीपीआईएमएल के टिकट पर चुनाव लड़े। इस बार भी उन्हें जीत नहीं मिली। 1995 में जेल में रहते हुए उन्होंने चुनाव में फाइट किया। उनका नॉमिनेशन किसी कारणवश रद्द हो गया। 1995 में पार्टी से सलाह कर अपने भाई मुनाफ आलम को मैदान में उतारा। लेकिन भाई को भी जीत नहीं मिली।
दो बार हुए गिरफ्तार
स्थानीय जानकारों के मुताबिक महबूब आलम को सफलता 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में मिली। महबूब ने सामने आकर नहीं फरारी में ही चुनाव लड़ा और जीत गये। उसके बाद जब 2005 में उनके चुनाव लड़ने की बारी आई। महबूब आलम ने सामने आना उचित नहीं समझा। उन्हें लगा कि सरकार उन पर आरोप लगाकर गिरफ्तार करवा सकती है। उस वक्त उन्होंने अपने भाई मुनाफ को खड़ा किया। मुनाफ चुनाव जीत गये। लेकिन उन्होंने महबूब की तरह जनता का ख्याल नहीं रखा। 2010 में महबूब आलम चुनाव में खड़े हुए। इस चुनाव में महबूब को हार मिली। 2015 में महबूब चुनाव जीते। तब से अब तक लगातार जीतते आ रहे हैं। मूल रूप से किसान महबूब आलम ने 12वीं तक पढ़ाई की है। 1978 में जन्मे महबूब आलम आम लोगों की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं। महबूब आलम के चुनावी हलफनामे के मुताबिक उन पर 14 आपराधिक मामले दर्ज हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में, आलम ने विकासशील इंसान पार्टी के बरुण कुमार झा को 53,597 मतों के अंतर से ह राया। इस चुनाव में आलम को 104,489 वोट मिले, झा को 50,892 वोट मिले थे।
लखपति हैं महबूब
महबूब आलम पर एक नेता की पत्नी की हत्या का आरोप भी लगा। उन्हें 1994 में जेल में रहना पड़ा। बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। 2007 में महबूब आलम को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। महबूब आलम के मुताबिक उन्हें उस केस में फर्जी तरीके से फंसाया गया था। 17 महीने की कैद के बाद उन्हें कोर्ट ने महबूब को जमानत पर रिहा कर दिया। 2014 के संसदीय चुनाव में कटिहार लोकसभा सीट के लिए नामांकन करते वक्त पुलिस ने एक बार फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 30 जुलाई 2016 को महबूब आलम पर बिहार के कटिहार जिले में एक बैंक के शाखा प्रबंधक को थप्पड़ मारने का मामला दर्ज किया गया था। आलम के पास 31 लाख रुपये की कुल संपत्ति है। इसमें 1300 वर्गफुट पर बना आवासीय भवन शामिल है। आलम की कुल सालाना आय पांच लाख 32 हजार के करीब है। महबूब के पास 85 हजार रुपये और पत्नी के पास 52 हजार रुपये नकद हैं। आलम के पास एक 21 हजार रुपये कीमत की हीरो होंडा बाइक है।
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