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Nalanda News: नालंदा के इस गांव में हिंदू-मुस्लिम सबका एक ही सरनेम, जानिए पीछे की वजह

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Nalanda News: नालंदा के इस गांव में हिंदू-मुस्लिम सबका एक ही सरनेम, जानिए पीछे की वजह

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रिपोर्ट- मो.महमूद आलम

नालंदा. बिहार का एक ऐसा गांव जो गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश कर रहा है. यह गांव नालंदा ज़िला मुख्यालय से 12 किमी दूर स्थित अस्थावां प्रखंड है. जिसके अंतर्गत कई गांव है उनमें एक नाम गिलानी गांव का है. जहां सैकड़ों घरों की आबादी चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम वहां के शत प्रतिशत लोग अपने नाम के आगे सरनेम ‘गिलानी’ इस्तेमाल करते हैं.

सदियों से चली आ रही परंपरा
यह सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि मुल्क के दूसरे हिस्सों में भी इनकी अलग पहचान है. वहीं, दूसरी पहचान यहां के आम की है, जिसकी सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी डिमांड आती है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. जिसे आज भी लोग निभा रहे हैं. अब तो युवा भी गांव का नाम अपने साथ जोड़ने में गौरव महसूस करते हैं. वह अपने गांव और वहां की मिट्टी से प्यार करते हैं. कई लोग तो ऐसे हैं, जो दशकों से दूसरे प्रदेशों में रह रहे हैं. इसके बाद भी उन्होंने गांव का साथ नहीं छोड़ा है.

आपके शहर से (नालंदा)

सरनेम से होती हैं गांव की पहचान
उनके नाम से ही पता चल जाता है कि वे किस गांव के हैं. गिलानी गांव के लोग अपने नाम के साथ गिलानी जोड़ते हैं. इसी तरह अस्थावां के अस्थानवी, हरगावां के हरगानवी, डुमरावां के डुमरानवी, उगावां के उगानवी, चकदीन के चकदीनवी और देसना गांव के लोग देसनवी सरनेम लगाते हैं. इन सब में गिलानी सबसे खास है. अन्य छह गांवों में सिर्फ मुस्लिम धर्म के लोग इस परंपरा का पालन कर रहे हैं. वहीं, गिलानी में हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग यह परंपरा निभा रहे हैं.

मुगल काल से जुड़ा है इतिहास
गांव के विपीन और सलमान अस्थानवी के मुताबिक मुगल काल से ही यह परंपरा चली आ रही है. ऐसी मान्यता है कि इस्लाम के एक अनुयायी हजरत अब्दुल कादिर जिलानी के नाम से ‘गिलानी’ नाम रखा गया है. अरबी भाषा में ‘ग’ अक्षर नहीं होता, इसलिए लोग उनको जिलानी कहते हैं. इस वजह से गांव का पूरा नाम मोहीउद्दीनपुर गिलानी है. मौलाना मुजफ्फर गिलानी की किताब ‘मजमीन’ के अनुसार, गिलान एक जगह का नाम है.

जहां बड़े पीर के अनुयायी रहा करते थे. वहां से किसी कारणवश कुछ लोग मोहीउद्दीनपुर गिलानी आए थे. उन लोगों के सरनेम में भी गिलानी लगा था. यहां उन लोगों के प्रभाव और आपसी सौहार्द को देखकर लोग अपने नाम के सरनेम में गांव का नाम लगाने लगे.

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