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मो. सरफराज आलम
सहरसा. खाजा… बोले तो खा जा. खाने के किसी सामान को खा जा, लेकिन बिहार में यह एक मिठाई है. मुंह में जाते ही मोम की तरह पिघल जाने वाली खाजा मिठाई के शौकीनों की यहां कोई कमी नहीं है. तभी तो नालंदा के सिलाव की मशहूर खाजा की दुकान सहरसा के मत्स्यगंधा में हर साल लगने वाले महायोगिनी मेला में पिछले 15 वर्षों से लग रही है. बिहार में वैसे तो अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग रंग रूप व आकार के खाजा हैं, लेकिन इन सभी में सिलाव के खाजा की अपनी अलग पहचान है.
नालंदा जिले के सिलाव के व्यापारी छोटू पंडित ने बताया कि वो इस मेले में पिछले 15 वर्षों से आ रहे हैं और खाजा का कारोबार करते हैं. उन्होंने कहा कि सिलाव खाजा बनाने के लिए पहले मैदा और घी का उपयोग करते हैं. दोनों को मिक्स कर बढ़िया से गूंथ लिया जाता है. फिर 15 से 20 मिनट उसे छोड़ दिया जाता है. इसके बाद लेप लगाकर उसकी कटिंग की जाती है और खाजा तैयार किया जाता है. उन्होंने बताया कि यहां का खाजा देश भर में प्रसिद्ध है. आम तौर पर यह खाजा काफी सॉफ्ट होता है, और खाने में बेहद स्वादिष्ट होता है.
220 रुपए किलो है सिलाव खाजा का दाम
छोटू पंडित बताते हैं कि उनके यहां खाजा का दाम 220 रुपए किलो है. हमारे यहां कम मीठा और ज्यादा मीठा वाला भी खाजा मिलता है. यह आम खाजा से काफी अलग है. लोग पहले दो-चार पीस खाते हैं, उसके बाद घर के लिए भी इसे पैक करा कर ले जाते हैं.
उन्होंने बताया कि उनके यहां पूरे दिन खाजा तैयार किया जाता है, और शाम को स्टॉल लगाकर मेले में बेचा जाता है. मेले में घूमने आए हर किसी की नजर सिलाव के खाजा पर जरूर पड़ती है. एक बार इस खाजा का स्वाद लोग जरूर ले सकते हैं.
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प्रथम प्रकाशित : जनवरी 06, 2023, 13:09 IST
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