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आदित्य का निहितार्थ क्या है ?
आदित्य ठाकरे के लिए तेजस्वी दो महत्वपूर्ण कारणों से अति आवश्यक बने हैं। पहला कारण तो चुनाव है। आदित्य ठाकरे को पता है कि बिहारी वोट यहां काफी हैं। चुकी राजद बिहार में सबसे बड़ा दल है और वोट के नजरिए से अगर किसी का जिताऊ समीकरण दुरुस्त है, तो वो है राजद का एमवाई। खासकर शिव सेना के दो फाड़ होने से उद्धव ठाकरे की पार्टी काफी कमजोर साबित हुई। अब चुकी 30 वर्षों तक डीएमसी पर कब्जा रहा है। उसे पाने के जुगाड़ में भी ये एक प्रयास है।
क्या मानते हैं जानकार ?
इस संदर्भ में विषशज्ञ डॉ. संजय कहते हैं कि एक जैसी राजनीतिक और सामाजिक परिस्थिति में देश के ये दोनो युवा नेता जूझ रहे हैं। तेजस्वी यादव चुकी इस समस्या से पार कर बिहार में सबसे बड़ी पार्टी और अब तो सरकार में बड़े भागीदार भी बन चुके हैं। आदित्य ठाकरे अभी अपने कमजोर हुए पिता की साए में राजनीतिक कदम फूंक-फूंक कर उठा रहे हैं । इस कड़ी में भी इस मुलाकात को देखना चाहिए।
इस मुलाकात में तेजस्वी के मायने
दरअसल, तेजस्वी यादव की तरफ से इस मुलाकात को इस नजरिए से देखा जाना चाहिए कि ये दोनो युवा नेता है और इनकी राजनीतिक पारी लंबी होने वाली है। दूसरी बात यह कि आज इन दोनों के विरुद्ध भाजपा एक बड़ी चुनौती की तरह है। ऐसे में जब भाजपा अभी सबसे बड़ी पार्टी देश की है, तो विरुद्ध में ज्यादा से ज्यादा दल एक जुट होंगे, तो उसका प्रभाव ज्यादा पड़ेगा। अब चुकी बिहार से ही नरेंद्र मोदी की सरकार के विरुद्ध राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उठाई है। उसके लिए शिव सेना का साथ आना एक प्रभावशाली जुटान माना जाएगा। तेजस्वी यादव जानते हैं कि नमो के विपक्ष के अभियान को जितना मजबूत करेंगे, बिहार की सत्ता की बागडोर उतनी ही जल्दी मिलेगी। सो ,तेजस्वी यादव ने इस मुलाकात को तरजीह दी और करीब 3 घंटा तक यह वार्तालाप चली।
नीतीश कुमार से मुलाकात न होने का निहितार्थ
राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह है कि चुकी शिव सेना का हिंदुत्व वाली छवि है इसलिए वे परहेजी कदम उठाया। ठीक वैसे ही जैसे अनंत सिंह की पत्नी या गोपालगंज चुनाव प्रचार में नही गए तो उसके पीछे एक का अपराधी छवि और दूसरे का शराब उद्योग से जुडे रहने की कारण नहीं किया। अपनी छवि के प्रति सचेत रहना नीतीश कुमार की आदत है। सो, पहली बार ये परहेजी कदम । हालांकि, आदित्य ठाकरे की मुलाकात नीतीश कुमार से भी हुई है। जिसकी तस्वीर सामने आई है। लेकिन एक बात तो जरूर है कि नीतीश कुमार विपक्षी एकता की मुहिम को बरकरार रखने का कोई न कोई तरीका ढूंढ लेते है। पहले तेलंगाना के सीएम केसीआर आए और अब आदित्य ठाकरे। चुनाव अभी दूर है पर विपक्षी एकता की मुहिम की मसाल जलाए रखना चाहते हैं।
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