Home Bihar पंचकोसी परिक्रमा में लोग क्यों खाते हैं लिट्टी-चोखा, भगवान राम से इसका क्या कनेक्शन ?

पंचकोसी परिक्रमा में लोग क्यों खाते हैं लिट्टी-चोखा, भगवान राम से इसका क्या कनेक्शन ?

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पंचकोसी परिक्रमा में लोग क्यों खाते हैं लिट्टी-चोखा, भगवान राम से इसका क्या कनेक्शन ?

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बक्सर : बिहार के बक्सर में हर साल पंचकोसी मेले का आयोजन होता है। पांच दिनों के भीतर देश भर से श्रद्धालु आते हैं। लिट्टी-चोखा बनाते हैं और भगवान श्रीराम का प्रसाद जानकर उसे खाते हैं। पंचकोसी मेला अपने आप में अद्भुत मेला है। पांच कोस की दूरी तय कर समाप्त होने वाले इस मेले की शुरुआत बक्सर से सटे अहिरौली से होती है। जहां माता अहिल्या का मंदिर है। दूसरे दिन नदांव, तीसरे दिन भभुअर, चौथे दिन बड़का नुआंव और पांचवे दिन बक्सर के चरित्रवन में मेला लगता है। पांच दिनों में श्रद्धालु अलग-अलग तरह का पकवान बनाकर भगवान को समर्पित करते हैं। पांचवें दिन विधिवत मेले का समापन होता है।

भगवान राम से सीधा कनेक्शन
इस मेले का भगवान राम से सीधा कनेक्शन है। वैसे तो लिट्टी-चोखा पूरे भोजपुर और बक्सर जिले का प्रिय व्यंजन है। लेकिन पंचकोसी मेले के दौरान इसकी महता बढ़ जाती है। कहा जाता है कि भगवान राम को पंचकोसी परिक्रमा करने के दौरान लिट्टी-चोखा से उनका स्वागत किया गया था। उसके बाद से यानि त्रेतायुग से लिट्टी-चोखा बनाने की परंपरा चली आ रही है। मार्गशीर्ष(अगहन) के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से आयोजित होने वाला ये मेला इस बार 13 नवंबर से शुरू हुआ है। समापन 17 नवंबर को चरित्रवन बक्सर में होगा।

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भगवान राम आए थे बक्सर
इस मेले के पीछे कथा है कि भगवान राम विश्वामित्र मुनी के साथ सिद्धाश्रम आए थे। भगवान राम ने यज्ञ में व्यवधान पैदा करने वाली राक्षसी ताड़का एवं मारीच-सुबाहू को उन्होंने मारा था। इसके बाद इस सिद्ध क्षेत्र में रहने वाले पांच ऋषियों के आश्रम पर आशीर्वाद लेने चले गए। जिन पांच जगहों पर वे गए, वे पंचकोसी के मुख्य पड़ाव बनते गए। इस दौरान स्थानीय लोगों ने उनका स्वागत, जिस इलाके में जो उपलब्ध था। वहीं देकर किया। कहा जाता है कि उसी परंपरा के अनुरुप ये मेला यहां आदि काल से अनवरत चलता आ रहा है। यहां हर पड़ाव पर मूली, सतु से लेकर जलेबी और पुआ-पकवान भी बनता है। अंत में चरित्रवन में उन्हें यानि भगवान राम को लिट्टी-चोखा मिला था। जिसकी वजह से समापन के दिन लिट्टी-चोखा बनता है।

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पहला पड़ाव अहिरौली
पंचकोसी परिक्रमा का पहला पड़ाव गौतम ऋषि का आश्रम है। जहां उनके श्राप से अहिल्या पत्थर हो गयी थीं। उस स्थान को वर्तमान में अहिरौली के नाम से जाना जाता है। जो बक्सर से सटा एक गांव है। इस गांव का काफी विकास हुआ है। इसी गांव में लोग मेले के दौरान पहले पड़ाव के तहत पहुंचते हैं। इसे लोग हनुमान का ननिहाल भी कहते हैं। यहां जब भगवान राम पहुंचे। तो उनके चरण स्पर्श से पत्थर बनी अहिल्या श्राप मुक्त हुई। पौराणिक मान्यता के अनुसार अहिल्या की पुत्री का नाम अंजनी था। जिनके गर्भ से हनुमान का जन्म हुआ। यहां देवी अहिल्या का मंदिर है। यहां मेला लगता है।

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दूसरा पड़ाव नदांव गांव
मेले का दूसरा पड़ाव नदांव में शुरू होता है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक यहां नारद मुनी का आश्रम हुआ करता था। इसी गांव में नर्वदेश्वर महादेव का मंदिर और नारद सरोवर विद्यमान है। यहां आने वाले श्रद्धालु खिचड़ी-चोखा बनाकर खाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां नारद आश्रम में भगवान राम और लक्ष्मण का स्वागत खिचड़ी-चोखा से हुआ था। तीसरा पड़ाव भभुअर है। जहां भार्गव ऋषि का आश्रम हुआ करता था। भगवान ने तीर चलाकर यहां तालाब का निर्माण किया था। उसके बाद से इसका नाम भभुअर हो गया। यहां भार्गवेश्वर महादेव का मंदिर भी है। जहां श्रद्धालु पूजा अर्चना करने के बाद चूड़ा खाते हैं।

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चरित्रवन में अंतिम पड़ाव
उसके बाद बक्सर शहर से सटा चौथा पड़ाव बड़का नुआंव गांव है। जहां उद्दालक मुनी का आश्रम बताया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि यहां माता अंजनी और हनुमान का निवास था। यहां मूली का प्रसाद चढ़ता है। मले की खासियत ये है कि पांचों दिन ठंड में श्रद्धालु गंगा स्नान करने के बाद पूजा-अर्चना करते हैं और उसके बाद पांरपरिक प्रसाद का भोग लगाते हैं। अंतिम दिन चरित्रवन में विश्वामित्र मुनी के आश्रम परिसर में लिट्टी चोखा भोज का आयोजन होता है। यहां श्रद्धालु उपले को जलाकर लिट्टी बनाते हैं। उसके बाद आलू और बैगन के चोखे के साथ उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

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