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आरजेडी की ओर से लालू यादव किसी भी कीमत पर बिहार की सत्ता एक बार फिर से पाना चाह रहे थे, वहीं नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए बिहार में पहली बार सरकार बनाने की कोशिश में थी। इसी बीच 2 सीटें जीतने वाली मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने आरजेडी को समर्थन देने की घोषणा कर दी। इसके बाद लालू यादव को राबड़ी देवी की सरकार रिपीट कराने के लिए केवल 37 विधायकों की जरूरत थी।
लालू यादव ने सोनिया गांधी से मांगा समर्थन
बहुमत के नंबर को जुटाने के लिए लालू प्रसाद यादव ने सबसे पहले तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मदद मांगी। सोनिया गांधी ने लालू यादव को बिहार में सपोर्ट करने का भरोसा दे भी दिया। लेकिन कांग्रेस का राज्य नेतृत्व लालू के साथ जाने के लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं था। उस वक्त कांग्रेस 23 विधायक थे। लालू यादव को सोनिया गांधी से आश्वासन की खबर पटना तक पहुंचते ही कांग्रेस की विधायक वीणा शाही आठ विधायकों को अपने साथ लेकर एनडीए से डील करने में जुट गईं। उधर, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के 12 विधायक भी एनडीए को सपोर्ट करने की तैयारी में थे। इसके अलावा भाकपा 5, माकपा (माले) 6 और 5 विधायकों वाली बीएसपी भी लालू के साथ जाने को तैयार नहीं थे। साथ ही 20 निर्दलीय विधायक भी थे।
लालू यादव दिल्ली में सरकार बनाने के लिए समर्थन जुटाने में जुटे थे तभी राज्यपाल वीसी पांडेय ने नीतीश कुमार को एनडीए के नेता के तौर पर सरकार बनाने का आमंत्रण दे दिया। 3 मार्च को नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली और उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 7 दिनों का वक्त मिला। नीतीश कुमार जब राज्यपाल भवन में मौजूद थे तभी आरजेडी के कार्यकर्ता राजभवन के बाहर एकत्र हो गए और काफी उपद्रव किया। इस दौरान आरजेडी कार्यकर्ता राज्यपाल के खिलाफ नारेबाजी करते रहे- ‘एनडीए का दलाल पांडेय होश में आओ, वापस जाओ’। आनन-फानन में लालू यादव दिल्ली से पटना पहुंचे और 5 मार्च को बिहार बंद का आह्वान किया। बंद के दौरान आरजेडी कार्यकर्ताओं ने पूरे बिहार में जमकर उपद्रव किया, रेल संपत्तियों को काफी नुकसान पहुंचाया गया।
दिल्ली जाने से लालू यादव को फायदा यह हुआ कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर माकपा महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन्हें बिहार में सपोर्ट करने की घोषणा कर दी। सोनिया की सहमति के बाद भी वीणा शाही की अगुवाई में 8 कांग्रेसी विधायक किसी भी सूरत में लालू यादव को सपोर्ट करने के लिए तैयार नहीं थे। इन 8 विधायकों में ज्यादातर मौजूदा झारखंड के इलाके से आने वाले आदिवासी समाज से थे।
लालू ने शहाबुद्दीन को पटना तलब किया
खुफिया सूत्रों से यह बात लालू यादव तक पहुंची तो वह तत्काल ऐक्टिव हो गए और फौरन सिवान के बाहुबली सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को पटना तलब किया। शहाबुद्दीन से कहा गया कि किसी भी कीमत पर कांग्रेस के सभी 23 विधायकों और कुछ निर्दलीय विधायकों को एक जगह पर एकत्र किया जाए। वरिष्ठ पत्रकार अरुण सिन्हा की किताब ‘नीतीश कुमार और उभरता बिहार’ के मुताबिक लालू यादव ने शहाबुद्दीन को जिम्मेदारी दी कि ऐसा इंतजाम किया जाए कि विधायकों तक एनडीए के नेता की पहुंच ना हो पाए, ताकि उन्हें बरगलाने का मौका ना मिले।
खुद शहाबुद्दीन पिस्टल लेकर कर रहे थे विधायकों की निगरानी
लालू यादव के इशारे पर मोहम्मद शहाबुद्दीन ने जैसे-तैसे कांग्रेस के सभी 23 विधायकों को पटना के होटल पाटलिपुत्र में ले आए। पूरे होटल में शहाबुद्दीन के गुंडों की तैनाती कर दी गई। विधायकों को कमरों से निकलने की सख्त मनाही थी। कोई विधायक जोर जबरदस्ती या होशियारी से निकल ना जाए इसलिए खुद शहाबुद्दीन होटल की लॉबी में हथियार के साथ डेरा जमाए थे। शहाबुद्दीन ने होटल में कैद विधायकों से कहा था कि नीतीश कुमार की सरकार रोकने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। उन्होंने विधायकों को चेतावनी दी थी कि अगर उन्होंने कोई होशियारी की तो वह उन्हें महंगी पड़ सकती है।
शहाबुद्दीन को जवाब देने के लिए मैदान में उतरे सुरजभान सिंह और सुनील पांडे
लालू यादव की ओर से विधायकों को कैद करने के तरीके का जवाब देने के लिए एनडीए की ओर से पीरो से समता पार्टी के बाहुबली विधायक नरेंद्र कुमार उर्फ सुनील पांडे मोकामा से नीतीश कुमार के मौन समर्थन से निर्दलीय जीतकर आए सुरजभान सिंह को याद किया गया। सुनील पांडेय और सुरजभान सिंह ने एनडीए को आश्वासन दिया कि अगर नीतीश कुमार जेल तक आकर उनसे समर्थन मांगते हैं तो वह उन्हें 10 विधायकों का समर्थन दिलाएंगे। नीतीश कुमार तो साफ-सुथरी छवि के चलते बाहुबलियों से समर्थन हासिल करने जेल तक नहीं गए लेकिन बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाशपति मिश्रा को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। सुनील पांडेय जमानत पर जेल से बाहर आए और एनडीए के लिए बहुमत जुटाने के काम में लग गए। आनन-फानन में कोर्ट से इजाजत ली गई कि सूरजभान सिंह, राजन तिवारी, मुन्ना शुक्ला और रामा सिंह जैसे कुख्यात बाहुबली नेता विधानसभा में बहुमत साबित करने के दौरान सदन में आएंगे। ये सभी जेल में रहते हुए विधायक का चुनाव जीते थे।
ये सभी बाहुबली जब जेल से सीधे विधानसभा में पहुंचे तो सदन में एनडीए नेताओं ने मेज थपथपा कर इनका स्वागत किया था। शपथ ग्रहण के बाद ये सभी 7 बाहुबली एक साथ नीतीश कुमार के विधानसभा वाले कमरे में दाखिल हुए और हाथ मिलाते हुए एनडीए की सरकार को समर्थन देने का आश्वासन दिया। नीतीश कुमार ने उन्हें शुक्रिया कहा।
नीतीश कुमार को 10 मार्च 2000 को विधानसभा में बहुमत साबित करना था। लेकिन उससे पहले विधानसभा में स्पीकर का चुनाव होना था। स्पीकर के पद के लिए आरजेडी ने कांग्रेस के सदानंद सिंह का नाम पहले ही आगे कर दिया। नीतीश कुमार को मालूम था कि कांग्रेस के 23 विधायकों का एकमुश्त समर्थन मिलने के चलते लालू यादव का पलड़ा विधानसभा में भारी है। इसलिए नीतीश कुमार ने सदानंद सिंह को निर्विरोध स्पीकर बनने दिया। इतना ही नहीं, बहुमत का नंबर 163 नहीं होने के चलते विधानसभा में एनडीए गठबंधन का फजीहत कराना ठीक नहीं समझा। आखिर उन्होंने बहुमत परीक्षण से पहले ही राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया और बिहार में एक बार फिर से राबड़ी देवी की अगुवाई में कांग्रेस और अन्य वाम दलों के समर्थन से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की सरकार बनी।
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