Home Bihar नीतीश कुमार राष्ट्रपति बनने से क्यों कर रहे हैं बार-बार इनकार? समझें राजनीति का पूरा गणित

नीतीश कुमार राष्ट्रपति बनने से क्यों कर रहे हैं बार-बार इनकार? समझें राजनीति का पूरा गणित

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नीतीश कुमार राष्ट्रपति बनने से क्यों कर रहे हैं बार-बार इनकार? समझें राजनीति का पूरा गणित

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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में अपनी दावेदारी को लेकर लगाई जा रही अटकलों पर एक बार फिर से विराम लगा दिया है। सोमवार को नीतीश कुमार ने साफ किया कि वह देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद की दौड़ में शामिल नहीं हैं। नीतीश कुमार ने कहा, ‘मैं देश का अगला राष्ट्रपति बनने की दौड़ में शामिल नहीं हूं और ना ही मैं कहीं जा रहा हूं। इस प्रकार की खबरें निराधार हैं और केवल अटकलें हैं।’ राष्ट्रपति चुनाव को लेकर नीतीश कुमार के ताजा बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में सवाल उठने लगे हैं कि आखिर बिहार के मुख्यमंत्री देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद की दौड़ में क्यों शामिल नहीं होना चाहते हैं। बिहार और देश की मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए जिन पांच बिंदुओं की बात हो रही है आइए उसे समझने की कोशिश करते हैं।

NDA शायद ही नीतीश को बनाए राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी
भारतीय राजनीति में नीतीश कुमार का नाम उन चुनिंदा नेताओं में लिया जाता है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वह ना केवल जनता की नब्ज को समझते हैं बल्कि वह पार्टी-पॉलिटिक्स के भी माहिर खिलाड़ी हैं। इस वक्त एनडीए में बीजेपी सबसे पावरफुल पार्टी है। इतना ही नहीं, बीजेपी में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दो सबसे मजबूत चेहरे हैं। ऐसे में दोनों राजनेता कतई नहीं चाहेंगे कि उनके समानांतर देश में कोई बड़ा चेहरा आए। इतना ही नहीं, नीतीश कुमार जातीय जनगणना, जनसंख्या नियंत्रण कानून, इतिहास को हिंदुओं के हिसाब से लिखे जाने, बिहार के सीमांचल में एनआरसी कानून लागू करने जैसे कई बड़े मुद्दे हैं जिसपर नीतीश कुमार बीजेपी को दो टूक अंदाज में अलग राय रख चुके हैं। ऐसे में अगर NDA नीतीश कुमार को राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्याशी बनाने पर विचार करती है तो बीजेपी के कोर वोटरों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है। इसके अलावा नीतीश कुमार जिस कुर्मी समाज से आते हैं कुछ राज्यों को छोड़ दें तो उसका देश की राजनीति में बहुत ज्यादा निर्णनायक रोल नहीं होता है। इस वक्त ऐसे हालात नहीं हैं कि एनडीए के घटक दल बीजेपी से इतर जाकर कोई फैसला ले। शायद इस वजह से नीतीश कुमार राष्ट्रपति चुनाव से खुद को अलग रख रहे हैं।

बिहार में बीजेपी को सौंपनी होगी मुख्यमंत्री की कुर्सी
नीतीश कुमार के राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्याशी बनने का मतलब है कि उन्हें बिहार में मुख्यमंत्री का पद बीजेपी को देना होगा। बिहार एनडीए में 77 विधानसभा सीटों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है। नीतीश कुमार की वजह से वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपने दल के नेता को नहीं बिठा पा रही है। अगर नीतीश सीएम की कुर्सी त्यागते हैं तो स्वभाविक है कि बीजेपी इसके लिए दावेदारी करेगी। राष्ट्रपति चुनाव में जीतने के समीकरण फिलहाल नीतीश कुमार पक्ष में नहीं दिखते हैं। इसलिए नीतीश कुमार केवल राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्याशी बनने के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने का जोखिम शायद ही लेंगे।
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नीतीश कुमार नहीं चाहेंगे अपनी पार्टी का खात्मा!
मौजूदा वक्त में जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) का मतलब ही नीतीश कुमार हैं। नीतीश कुमार का जेडीयू से नियंत्रण हटते ही इस पार्टी के कई टुकड़े होने की पूरी संभावना है। बिहार की राजनीति को समझने वाले लोग कहते हैं कि नीतीश कुमार के अलग होते ही जेडीयू के ज्यादातर नेता या तो बीजेपी या फिर आरजेडी में जाते हुए दिख सकते हैं। इस पार्टी से जुड़े नेता भली-भांति जानते हैं कि अगर नीतीश कुमार को माइनस कर दिया जाए तो उनके पास कोई ठोस जनाधार नहीं है। ऐसे में नीतीश कुमार शायद ही चाहेंगे कि उनकी बनाई पार्टी का हश्र कुछ इस तरह हो।
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बड़े पदों को लेकर चौंकाती रही है बीजेपी
2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से बड़ी जिम्मेदारी सौंपने में बीजेपी हमेशा से चौंकाती रही है। महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस, झारखंड में रघुवर दास, हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर, गुजरात में विजय रूपाणी, उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी, हिमाचल में जयराम ठाकुर जैसे कम जाने पहचाने चेहरों को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई। पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने में सबको चौंकाते हुए जेपी नड्डा को जिम्मेदारी सौंपी गई। बिहार में रेणु देवी और तारकिशोर प्रसाद को डेप्युटी सीएम बनाया जाना। इसके अलावा मोदी कैबिनेट में भी कई ऐसे मंत्री बने जो बिल्कुल ही आउट ऑफ फ्रेम रहे। ठीक इसी तरह राष्ट्रपति चुनाव में रामनाथ कोविंद को महामहिम की कुर्सी पर विराजमान कराना। ये तमाम फैसले बताते हैं कि बीजेपी का मौजूदा नेतृत्व की किसी बड़ी जिम्मेदारी के लिए बिल्कुल ही फ्रेश चेहरों पर भरोसा करती रही है। ऐस हिसाब से अनुमान लगाया जा रहा है कि नीतीश कुमार के नाम पर शायद ही मुहर लगे।
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बिहार के राजनेता के रूप में अपनी पहचान चाहते हैं नीतीश?
एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि नीतीश कुमार 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के चेहरे के सामने करारी शिकस्त झेलने के बाद खुद को बिहार तक ही समेट चुके हैं। नीतीश कुमार चाहते हैं कि जब वह राजनीति से संन्यास लें तो बिहार की जनता शराबबंदी और दहेज कानून जैसे फैसलों को लेकर उन्हें याद करती रही। नीतीश कुमार की उम्र 70 के पार हो चुकी है। ऐसे में वह कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहेंगे कि जिसमें उन्हें मुंह की खानी पड़े। मौजूदा वक्त में वह जानते हैं कि बिहार के बाहर यानी केंद्र में उनके लिए कुछ मुफीद वक्त नहीं है। इसलिए वह अगर राजनीति से रिटायरमेंट भी लेते हैं तो अपने राज्य और अपने लोगों के बीच सम्मान से बने रहना चाहेंगे।

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर क्या है नीतीश की पार्टी का रुख
राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव 18 जुलाई को होगा और मतगणना 21 जुलाई को होगी। इस पद के लिए बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री और जेडीयू के वरिष्ठ नेता श्रवण कुमार ने सीएम नीतीश कुमार का नाम आगे किया था। श्रवण कुमार ने कहा था कि नीतीश कुमार में राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक सभी योग्यताएं हैं। उन्होंने कहा था, ‘बिहार निवासी होने के नाते, मेरी इच्छा है कि नीतीश कुमार भारत के राष्ट्रपति बनें’ और हालांकि वह इस दौड़ में शामिल नहीं हैं, लेकिन ‘हर व्यक्ति चाहता है कि वह देश के राष्ट्रपति बनें।’ नीतीश के राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होने की बात सबसे पहले महाराष्ट्र के नेता नवाब मलिक ने फरवरी में की थी। उन्होंने कहा था कि यदि नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी (BJP) से नाता तोड़ देते हैं, तो शरद पवार के नेतृत्व वाली उनकी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) राष्ट्रपति पद के चुनाव में उनका समर्थन करने के लिए तैयार है। कुमार ने कहा कि हाल में हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान धन के कथित इस्तेमाल और अन्य भ्रष्ट कार्यों का कोई मामला बिहार में सामने नहीं आया। उन्होंने कहा, ‘जिन राज्यों में ऐसे मामले सामने आए हैं, उन्हें बिहार से सीख लेनी चाहिए।’

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