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जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ और सूर्य कांत की पीठ ने कहा कि ‘हमारे पास औपनिवेशिक युग से बड़ी संख्या में इमारतें हैं। कुछ ब्रिटिश युग, डच युग और यहां तक कि फ्रांसीसी युग के भी हैं। ऐतिहासिक महत्व वाली इमारतें हो सकती हैं जिन्हें संरक्षित किया जा सकता है लेकिन सभी इमारतें नहीं।’ वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह के जरिए बिहार सरकार ने बताया कि इमारत जीर्ण-शीर्ण अवस्था में थी और लोगों के लिए एक गंभीर खतरा था। राज्य ने आगे अदालत को बताया कि बिहार शहरी कला और विरासत आयोग ने 4 जून, 2020 को कलेक्ट्रेट परिसर को ध्वस्त करने की मंजूरी दी थी। 1972 में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने बिहार में एक सर्वेक्षण किया था और 72 ऐसे स्थलों की पहचान की थी जो ऐतिहासिक स्मारक के योग्य थे। उस वक्त भी इस लिस्ट में पटना कलेक्ट्रियट भवन शामिल नहीं था।
जानिए, क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘इस इमारत में क्या विरासत हो सकती है। हमें जो तस्वीरें दी गई हैं उससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि इसकी छत कई जगह गिर चुकी है। यहां तक कि एएसआई ने भी कहा है कि इसका कोई विरासत मूल्य नहीं है। यह एक गोदाम था जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों द्वारा नमक और अफीम रखने के लिए किया जाता था।’ अदालत ने ऐसे उदाहरण दिए जैसे वह जेल जहां स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में रखा गया था जो ऐतिहासिक महत्व के हैं और जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है। वर्तमान इमारत के बारे में बताते हुए कोर्ट ने कहा कि ‘यह इमारत निर्दोष नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डालती है। इस संरचना को रख कर आप कितने मानव जीवन को खतरे में डालना चाहते हैं?’
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