Home Bihar तेजी से घट रहा भूगर्भ जल स्‍तर संरक्षण के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग और रिसाइकलिंग पर ध्‍यान दे राज्‍य सरकारें

तेजी से घट रहा भूगर्भ जल स्‍तर संरक्षण के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग और रिसाइकलिंग पर ध्‍यान दे राज्‍य सरकारें

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तेजी से घट रहा भूगर्भ जल स्‍तर संरक्षण के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग और रिसाइकलिंग पर ध्‍यान दे राज्‍य सरकारें

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पटना : पानी की कमी आज पूरे विश्व के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। भारत भी इसकी चपेट में है। विशाल जनसंख्या के लिए हर रोज स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना बड़ी समस्या भी है। पानी की कमी का असर खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्पादकता पर भी पड़ रहा है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों की मानें तो हर व्यक्ति को अपने रोजमर्रा के लिए करीब 25 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। भारत के कई इलाकों में लोगों को अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कहीं उन्हें बहुत दूर से पानी ढोकर लाना पड़ता है, तो कहीं सीमित समय के लिए की जा रही आपूर्ति पर निर्भर रहना पड़ता है। देश के कई हिस्सों में भूमिगत जल का बड़ी मात्रा में उपयोग किया जाता है, जिस वजह से देश के विभिन्न हिस्सों के जलस्तर में तीव्र गिरावट दर्ज की जा रही है।

भूगर्भ जल स्‍तर में लगातार आ रही गिरावट
जनजल के फाउंडर डॉ. पराग अग्रवाल कहते हैं भारत भू-जल के उपयोग के मामले में पूरे विश्व में शीर्ष पर आता है। एक अनुमान के अनुसार भू-जल का 85 फीसद कृषि में, 5 फीसद घरेलू और 10 फीसद उद्योग में उपयोग किया जाता है। धान और गन्ना जैसी फसलों के उत्पादन के लिए कुल सिंचाई के लगभग 60 फीसद जल का उपयोग किया जाता है। पंजाब में 1 किलोग्राम चावल के उत्पादन के लिए लगभग 5000 लीटर तक पानी खर्च हो जाता है। यही कारण है कि भू -जल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। भूमिगत जल प्रबंधन के लिए प्रभावी विनियमन की कमी भी इस स्थिति के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है। कई क्षेत्रों बिहार, उत्‍तर प्रदेश के कई हिस्‍से और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी स्थिति बहुत खराब हो चुकी है।
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भूजल संभरण पर सरकार का ध्‍यान नहीं
भारत का गैर नियोजित शहरीकरण भी जल की समस्या के लिए जिम्मेदार है। डॉ. पराग अग्रवाल का कहना है कि विकास कार्यों के लिए भू-जल का उपयोग किया जाता है। मगर भूजल संभरण तकनीकों पर जोर नहीं दिया जाता। देश में प्रभावी सीवेज सिस्टम के विकास को भी बहुत ही हल्के में लिया गया है। एक ओर जहां इसके रिसाइकल की व्यवस्था नहीं की गई वहीं इसे प्राकृतिक जल संसाधनों से जोड़कर उसके पानी को दूषित किया गया। इस जल सुरक्षा पर जरूरी ध्यान नहीं दिया गया। पानी की समस्या के साथ ही इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न हो रही है।
वक्‍त रहते उचित कदम उठाने की जरूर
डॉ. पराग अग्रवाल का कहना है कि आने वाले दिनों में जल की कमी से देश को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। कृषि क्षेत्र को पर्याप्त मात्रा में जल नहीं मिलने से कुल उत्पादन और खाद्य सुरक्षा पर काफी नकारात्मक असर पड़ेगा। विश्व बैंक के अनुसार जल संकट GDP पर असर डालेगा और रोजगार की समस्या उत्पन्न होगी। इसके साथ ही, पर्यावरण और जैव विविधता पर इसके परिणाम देखने होंगे। पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं को भारी नुकसान होगा। उन्‍होंने बताया यह समय की मांग है कि जल सुरक्षा पर गंभीर चिंतन करते हुए उचित कदम उठाया जाय।
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आम लोगों की भागीदारी भी जरूरी
सरकार सतत विकास लक्ष्य 6 के तहत वर्ष 2030 तक सभी लोगों के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। ‘नल जल’ योजना के तहत 2024 तक सबको नल से जल की आपूर्ति का लक्ष्य रखा गया है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति तभी संभव है जब जल संसाधनों का समुचित प्रबंधन किया जाय। भूमिगत जल के उपयोग को कम करने की आवश्यकता है। महाराष्ट्र-कर्नाटक क्षेत्र के अधिक पानी की आवश्यकता वाले फसलों जैसे गन्ने की खेती को नियंत्रित कर इसको उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे क्षेत्रों में बढ़ावा देने की अवश्यकता है। इसके साथ ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग और रीसाइक्लिंग को मजबूत करने पर जोर दिया जाना चाहिए। सरकार के साथ ही आमलोगों को भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना होगा।
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जल प्रबंधन की नई तकनीक का इस्‍तेमाल जरूरी
सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि जल प्रबंधन के क्षेत्र में नवीन तकनीक का इस्तेमाल किया जाय। यह पानी की समस्या को कम करने में काफी हद तक मददगार साबित हो सकता है। तकनीक के द्वारा आपूर्ति व्यवस्था को मजबूत करने के साथ ही, पानी की बर्बादी को कम किया जा सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी तकनीकों का उपयोग कर असंभव को संभव बनाया जा सकता है।

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