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पटना. बिहार सरकार (Bihar Government) की तमाम कोशिशों के बाद भी शराब माफिया (Liquor Mafia) और धंधेबाजों का क़हर रुकने का नाम नहीं ले रहा है. होली पर कथित जहरीली शराब (Spurious Liquor) पीने से 30 से ज्यादा लोगों की जान चली गई. मृतकों के परिवारवाले कैमरे के पीछे मानते हैं कि मौत शराब पीने (Alcohol Death) से हुई लेकिन, माफिया और पुलिस के डर, कोर्ट-कचहरी का चक्कर और इंश्योरेंस के पैसे की खातिर बाद में खामोश हो जाते हैं. इसी हालात का नाजायज फायदा उठा रहे हैं वैसे पुलिसवाले जिनकी जिम्मेदारी तय की गई है.
बिहार में शराब तस्करों और ज़हरीली शराब के धंधेबाजों के खिलाफ राज्य सरकार ने मुहिम छेड़ रखी है. शराब तस्करी को रोकने के लिए कहीं हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल किया जा रहा है, तो कहीं ड्रोन से पैनी नजर रखी जा रही है. गंगा के आस-पास के इलाकों में अवैध शराब पर रोक लगाने के लिए पुलिस मोटरबोट का भी इस्तेमाल कर रही है. और तो और, शराब की तस्करी को रोकने के लिए सीमावर्ती सड़कों पर गाड़ियों की स्कैनिंग की तैयारी चल रही है. शराब के खिलाफ एक तरफ प्रशासनिक मुहिम चल रही है तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद इसे समाज सुधार से जोड़ कर समाज सुधार यात्राएं कर रहे हैं.
नशाबंदी के खिलाफ सरकार के चौतरफा हमले के बाद भी होली में 30 से ज्यादा परिवार उजड़ गए. चंद दिनों के भीतर बिहार के चार जिलों बांका, भागलपुर, मधेपुरा और सीवान में 30 से ज्यादा लोगों की कथित ज़हरीली शराब पीने से मौत हो गई. हैरानी की बात है कि पुलिस इन मौतों की वजह बीमारी बता रही है.
पुलिस और प्रशासन के तमाम उपाय और प्रयासों के बावजूद धंधेबाज बिहार में तस्करी कर अवैध शराब लाने में कामयाब रहते हैं (प्रर्तीकात्मक तस्वीर)
नशाबंदी नीतीश कुमार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समाज सुधार यात्रा के दौरान जहां कहीं भी जाते हैं वहां बार-बार दोहराते हैं कि ‘पियोगे तो मरोगे’. नीतीश कुमार खुद स्वीकार करते हैं कि ज़हरीली शराब पीने से मौत होती है. नशाबंदी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की न सिर्फ सबसे महत्वाकांक्षी योजना है बल्कि उनके संकल्प से जुड़ा बड़ा अभियान भी है. नशाबंदी को कामयाब बनाने के लिए सीएम नीतीश कुमार वो सारी कोशिशें कर रहे हैं जो मुमकिन है. इसके बाद भी नशाखोरों का काला धंधा थमने के बजाय लोगों की जान ले रहा है. पर, होली के दौरान नशे से जुड़ी मौतों को जिस नजरिये से पुलिस-प्रशासन देखने की कोशिश कर रहा है वो हैरान करने वाला है.
पीड़ित परिवारों के लोग खुद बता रहे हैं कि शराब पीने के बाद तबीयत बिगड़ी जिससे उनके अपनों की जान चली गई. लेकिन पुलिस प्रशासन का कहना है कि किसी की मौत हार्ट अटैक से हुई, तो किसी की जान पुरानी बीमारी से गई. दरअसल पुलिस मामले की जड़ तक जाने और कातिलों तक पहुंचने के बजाय तकनीकि वजहें गिनाकर अपनी नाकामी छिपाना चाहती है.
शराबबंदी पर CM नीतीश कुमार ने की थी मैराथन बैठक
अब समझिये कि पुलिस ऐसा करने में कामयाब कैसे हो रही है? पिछले साल नवंबर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मैराथन समीक्षा बैठक कर यह साफ कर दिया था कि जिसके इलाके में शराब मिलेगी, उसका जीवन खराब हो जाएगा. सरकार ने जिम्मेदारी तय की थी कि जिस गांव में शराब मिलेगी वहां के चौकीदार को सस्पेंड या बर्खास्त किया जाएगा. जिस थाना क्षेत्र में शराब मिलेगी वहां का थानेदार सस्पेंड होगा और अगले 10 साल तक थानेदारी नहीं मिलेगी. साथ ही शराब के धंधे में शामिल पुलिसवालों की बर्खास्तगी होगी. मगर दोषी चौकीदार या थानेदार पर कार्रवाई तो तब होगी न जब किसी की मौत के बाद यह प्रमाणित हो पाए कि उसकी जान जहरीली शराब पीने से गई है.
नवंबर 2021 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में लागू शराबबंदी कानून की समीक्षी के लिए मैराथन बैठक बुलाई थी (फाइल फोटो)
यह प्रमाणित कौन करेगा? जाहिर है कि सबसे पहले परिजन बताएंगे कि मृतक ने शराब पी थी या नहीं. इसके बाद संदिग्ध मौत की वजह पोस्टमॉर्टम और FSL रिपोर्ट से प्रमाणित होगी.
मृतक के परिवारवाले शुरू-शुरू में यह स्वीकार तो करते हैं कि मरने वाले ने शराब पी थी. लेकिन, फिर वो पुलिस के सामने बदल जाते हैं. इसकी तीन वजह है- पहला शराब माफिया का दबाव. दूसरा पुलिस का दबाव, और तीसरा इंश्योरेंस का पैसा खोने का डर. माफिया मौत के बाद अपना नाम नहीं बताने के लिए परिवार को मौत तक की धमकी देते हैं. तो पुलिस पर आरोप लगते हैं कि वो अपनी नौकरी बचाने के लिए पीड़ित परिवार पर शराब की बात नहीं कहने का दबाव डालती है. वहीं, परिवार पोस्टमॉर्टम से तब पीछे हट जाता है जब उसे पता चलता है कि शराब से मौत की पुष्टि पर उन्हें मृतक के इश्योंरेंस का पैसा नहीं मिलेगा.
मृतक के परिवारवाले बीमा क्लेम नहीं कर सकते
बता दें कि यदि किसी व्यक्ति की शराब पीने से मौत होती है तो उसके परिवारवाले बीमा क्लेम नहीं कर सकते. ऐसी स्थिति में परिवार को लगता है कि जो चला गया उसको लेकर पुलिस और कोर्ट-कचहरी से पचड़े में पड़ने से अच्छा है कि चुप रहकर आगे की सोची जाए. इंश्योरेंस का कुछ पैसा मिल गया तो आश्रितों को कुछ सहारा हो जाएगा. गरीब परिवारों की यही मजबूरी माफिया से लेकर चौकीदार और थानेदारों तक को बचा लेती है जिनकी जिम्मेदारी और जवाबदेही राज्य सरकार ने तय की थी. अगर इस स्थिति को नहीं बदला गया तो शराबबंदी कानून वाले बिहार में चौकीदार और थानेदार के कथित संरक्षण में ज़हरीली शराब बनती रहेगी, लोग पीते रहेंगे, पीकर मरते रहेंगे और आंकड़ों में उनका नाम भी दर्ज नहीं होगा.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
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