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स्टोरी हाइलाइट्स
- पहली फिल्म भी 20 मई को हुई थी रिलीज
- भूल भुलैया 2 में अपने किरदार को लेकर उत्साहित हैं कार्तिक
कार्तिक आर्यन ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत प्यार का पंचनामा से की थी. एक दशक के बाद कार्तिक की लेटेस्ट फिल्म भुल भूलैया 2 भी ठीक उसी डेट पर रिलीज हो रही है, जिस दिन प्यार का पंचनामा रिलीज हुई थी. अपने इस करियर में कार्तिक ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. एक न्यूकमर से स्टारडम का स्वाद चख रहे कार्तिक ने अपने सफर पर दिल खोलकर बातचीत की है.
आपकी पहली फिल्म भी 20 मई को रिलीज हुई थी. मानते हैं लाइफ का सर्किल पूरा हुआ?
– हां, यह काफी मैजिकल है. जब मैंने रिलीज डेट सुनी थी, तो मैंने कहा हां, इसी डेट को रख दो. यकीन नहीं होता कि यहां तक पहुंच गया हूं. मैं पिछले दिनों ही भूल भुलैया 2 का गाना सुन रहा था, तो इसी बीच बन गया कुत्ता सॉन्ग देखने लगा. दोनों ही वीडियो को कंपेयर कर रहा था, एकदम टाइमलैप्स सा गुजरता हुआ महसूस हुआ था.
ऑडिशन से 100 करोड़ क्लब में फिल्म आने के सफर के बीच आप मानते हैं कि इस इंडस्ट्री में जमीन तलाश ली है?
-अभी तो बहुत लंबा सफर तय करना है. ऑडिशन के वक्त बस एक ब्रेक मिलने का टारगेट सेट किया था. फिर जब ब्रेक मिला, तो पहली फिल्म के सक्सेस का लक्ष्य बनाया. सफर के साथ-साथ आपके लक्ष्य बदलते रहते हैं. पहली फिल्म कैसे मिलेगी, लोगों को मेरा नाम कैसे पता लगेगा इस पर काम किया.फिर सोनू की टीटू जैसी फिल्मों के अलावा दूसरी तरह की फिल्म करने का लक्ष्य, प्रोग्रेस के साथ-साथ आप खुद को बदलते रहते हैं. इस रेस की कोई फीनिश लाइन है नहीं. रही बात जमीन की, तो वो बढ़ती ही जा रही है, जिसे तलाशते ही रहता हूं.
स्टारडम मिलने के बाद कौन सी चीज मिस करते हैं?
– मैं जब अपने दोस्तों व फैमिली के साथ डिनर के लिए जाता हूं, तो वहां प्राइवेसी नहीं मिलती है. फैंस सेल्फी के लिए आ जाते हैं और मैं उन्हें इंकार नहीं कर पाता. लेकिन वो ये नहीं समझते हैं कि मैं जिनके साथ हूं, वो इस चीज से नाराज होते हैं क्योंकि मेरे डिनर का आधे से ज्यादा वक्त सेल्फी देने में ही चला जाता है. मेरे फैमिली व फ्रेंड्स बहुत कंपलेन करते हैं, यहां तक वे अब मेरे साथ बाहर आउटिंग के लिए जाना नहीं चाहते हैं. बायकॉट कर दिया है उन्होंने, उनको लगता है कि मैं अटेंशन ले रहा हूं. वो तो कहते हैं कि तुमको लेकर गए तो पंगा पड़ जाएगा.
स्टारडम के साथ क्रिटिसिज्म भी आता है. क्रिटिसिज्म से कितना डर लगता है?
-मुझे क्रिटिसिज्म की ज्यादा परवाह नहीं करता हूं. मैंने शुरुआत में जैसा अपना एटीड्यूड रखा था, वही लेकर आज भी चलता हूं. हां जो खामियां हैं, उसे समय दर समय ठीक करता रहता हूं. बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को लेकर ज्यादा नहीं सोचता हूं. मेरे लिए नंबर्स मायने नहीं रखते हैं, लेकिन हां चाहता हूं कि मेरी नई फिल्म पिछली फिल्म से ज्यादा सक्सेसफुल रहे. मेरे लिए बॉक्स ऑफिस नंबर से ज्यादा वर्ड ऑफ माउथ ज्यादा महत्वपूर्ण है. इससे तो आपका बॉक्स ऑफिस कलेक्शन बढ़ता भी है. मैं बहुत लालची किस्म का एक्टर हूं, मुझे सब चाहिए फिल्म का कलेक्शन भी उम्दा हो, क्रिटिक्स भी सराहे और वर्ड ऑफ माउथ से भी फिल्म चले.
सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग भी कई बार हुई है. कितनी अफेक्ट करती हैं?
-मुझे बिलकुल अफेक्ट नहीं करती हैं. मैं ये देखता हूं कि कुछेक लोग मुझे ट्रोल कर रहे हैं लेकिन प्यार करने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है. निगेटिविटी पर ध्यान देने लगूंगा, तो शायद फोकस नहीं कर पाऊंगा. देखिए, आप हर किसी को खुश नहीं कर सकते हैं. आप चाहें कितनी भी अच्छी फिल्म बना लें, सबको पसंद नहीं आएगी. इसका कोई अंत नहीं है.
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पैन इंडिया आजकल डिबेट का टॉपिक बना हुआ है. आपको लगता है बॉलीवुड को भी अपनी मल्टीलिंगुअल फिल्म बनाने पर फोकस करना चाहिए?
– यह फिल्म पर निर्भर करता है. क्या फिल्म की कहानी बाकी जगहों के दर्शकों को सही मायने में अट्रैक्ट कर पाएगी. हालांकि बाईलिंगुअल हो जाती हैं फिल्में, तो इसमें कोई खराबी तो है नहीं, बल्कि इससे हमें और ऑडियंस का फुटफॉल मिलेगा. लेकिन ये फाइनल कॉल तो डिस्ट्रीब्यूटर्स का है.
कहा जा रहा है कि साउथ की फिल्मों ने टेकओवर कर लिया है. आप क्या कहना चाहते हैं?
– मुझे लगता है कि अच्छी फिल्में चल रही हैं. इसका किसी भाषा से मतलब नहीं है. कहानी बेहतरीन है, तो हर तरह की फिल्म चलेंगी. अब गंगूबाई भी चली और आरआरआर भी चली थी.
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