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हमारी इस साफ सुथरी, दीवारों से घिरी, पढ़ी लिखी दुनिया के उस पार भी एक दुनिया है. एक दुनिया जो हमसे अलग है. जिससे हम डरते हैं, घिन् भी करते हैं और जो हमारी जिंदगी में किसी ना किसी रूप में शामिल भी है. मैं बात कर रही हूं स्लम और उसमें रहने वाले लोगों की, जिनसे जुड़ी एक बढ़िया कहानी को डायरेक्टर नागराज मंजुले और अमिताभ बच्चन लेकर आए हैं.
ये कहानी विजय बरसे के जीवन पर आधारित है. विजय कॉलेज से रिटायर्ड स्पोर्ट्स प्रोफेसर हैं, जिन्होंने झोपड़पट्टी में रहने वाले अनगिनत बच्चों को फुटबॉल की ट्रेनिंग दी है और स्लम सॉकर नाम के एनजीओ की स्थापना भी की है. अमिताभ बच्चन का किरदार विजय बोराड़े, इन्हीं विजय की कहानी बयां करता है.
विजय बोराड़े अपने रिटायरमेंट के करीब हैं. ऐसे में वह अपनी कॉलोनी की दीवार के उस पार जाकर बच्चों को एक डब्बे के साथ खेलता देखते हैं. विजय के दिमाग में आईडिया आता है, जिसके बाद वो बच्चों को आधा घंटा खेलने के लिए 500 रुपए देने का वादा करते हैं. बस यही से कहानी की शुरुआत होती है. विजय बोराड़े फुटबॉल के खेल की मदद से उन बच्चों को नशे और क्राइम जैसी चीजों से दूर कर उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने में लग जाते हैं.
एक्टिंग
अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म में कमाल का परफॉरमेंस दिया है. यहां वह एक रिटायर्ड प्रोफेसर के रोल में नजर आए, जो अपने खर्चे पर लोगों की मदद कर रहा है. वो परेशान भी है लेकिन दूसरों के सपनों की कीमत उसके लिए अपनी परेशानी से ज्यादा है. अमिताभ ने विजय बोराड़े के किरदार को बढ़िया अंदाज में निभाया है. उन्हें देखकर लगता है कि वह असल में विजय हैं. सबसे अच्छी बात है कि उन्होंने किसी भी साथी कलाकार को ओवरशैडो नहीं किया बल्कि उनके काम को निखारने में मदद की है. फिल्म में अंकुश मसराम उर्फ डॉन और बाबू जैसे किरदारों पर आपका सबसे ज्यादा ध्यान जाता है. डॉन की जिंदगी के स्ट्रगल आपको परेशान कर अच्छे की उम्मीद करने को कहते हैं तो बाबू की बातें आपको हंसाती हैं. नागराज की फिल्म सैराट के एक्टर रिंकू राजगुरु और आकाश थोसार भी इस फिल्म में हैं और दोनों ने बढ़िया काम किया है.
डायरेक्शन
नागराज मंजुले ने कमाल का डायरेक्शन किया है. साथ ही आपको इस फिल्म में एक्टिंग करते हुए भी वह दिख जाएंगे. नागराज ने ही झुंड की कहानी को लिखा है और बेहद खूबसूरती से इसे बनाया है. ये फिल्म आपको सीख देती है, आपको सोचने पर मजबूर करती है और शुरू से अंत तक आपको अपने साथ जोड़े भी रखती है. रंगीन किरदारों से भरा फिल्म का फर्स्ट हाफ एनर्जी भरा और मजेदार बनाता है तो वहीं सेकंड हाफ ड्रामा से भरपूर है. इस फिल्म में कई मुद्दों को उठाया गया है, जिसमें जाति विभाजन, महिलाओं के अधिकार, समाज की जजमेंट शामिल है. कुछ इसे शक्तिशाली फिल्म बनाएंगे हैं तो कुछ बस आपका ध्यान भटकाते हैं. झुंड की एक कमी ये भी है कि ये काफी लंबी फ़िल्म है, तो आपको सेकंड हाफ में धैर्य रखना होगा. फ़िल्म का म्यूजिक अजय-अतुल ने दिया है. उनका म्यूजिक नागराज की बढ़िया फ़िल्म में सोने पर सोहागा वाला काम करता है. तो इस हफ्ते झुंड देखने का प्लान बना ही लीजिए.
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