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धोबिया लोक कला क इतिहास धोबी जाति के अस्तित्व जेतना ही पुराना हौ. धोबी जाति क मूल काम कपड़ा धोवय क रहल हौ. दिन में कपड़ा धोइले क थकान मिटावय बदे संझा के गीत-संगीत धोबी समाज के दिनचर्या क हिस्सा रहल. इहय दिनचर्या लोक संस्कृति, लोक कला क रूप लेइ लेहलस. गीत संगीत के माध्यम से काम क कठिनाई, जीवन क सघर्ष, आशा-निराशा, समस्या, प्यार-मनुहार, हास-परिहास जइसन मन क भाव जाहिर कइके धोबी समाज क लोग आपन मन हलका करयं. कपड़ा धोवय के काम के कठिनाई पर इ गीत देखा -’’मोटी-मोटी लिटिया बनाए रे धोबिनिया, सबेरवय चलय के बाटै घाट.’’ यानी सबेरे घाटे पर जाइ के कपड़ा धोवय में हाड़तोड़ मेहनत करय के पड़ी, अउर मेहनत बदे ताकत चाही. ताकत क तइयारी संझा से ही शुरू हौ, अउर ओही क्रम में मोट-मोट लिट्टी बनावय क निर्देश धोबी अपने धोबिन के देत हौ कि पतील फुलका खइले से घाटे पर कपड़ा न धोवाई.
बी लोक कला कला से कला कला मेल खाला। जनसंस्कृति में भी लोड क काम खतम भइले के संझा के गीत-गीत के बाद खराब थकान मिवय क परंपरा हौ। जाति जाति जाति के डरावने हौ। पूरी तरह से रचा हुआ खाला। मिथिक हौ कि धोबी जाति से संपर्क छत्तीसगढ़ के कोरबा नस्ल से रली हौ. जैज जाति के गुणधर्मा हो, ओइस्य धात्री वर्णालेखालेखाब, नदी, ट्रैकिंग होला। समस्तबी गीत केन्द्र में घाट, तातकब, ट्रैकिंग मिलि जयं। धुन, नृत्य, वादो-यंत्र, विश्वास, मिटिक अउर कथा शामिल हयन।
लोक संगीत क आप अलग अलग राग हौ। संगीत-नृत्य में मृदंग, कंवर, (पिटेरी कझ पर अउर लकड़ी), झां, तुरही, हरमुनिया कस्तूरी होला। पूरी तरह से अलग होला। इ पहिनावा आदिवासिन के पहिनावा से खाला। घघरा अउर कुरती नचनी मुख्य पहिनावा हौ. गोडे में घेघू अउर्वे में आवरण फेटा जाला। कपारे पर बगी भी। नाच में लिल्ली घोड़ी होला। घघरा अउर कुरती कला खुद रची-रचि के निर्माण. उदाहरण घघरा-कुर्ती नाहीं होत। घघरा क रंगर अक्यूसर लाल होला अउर जाल कुरती में सभी रंग अउर डिजाइन के कपड़न कचकती सीयल जाला, खतरनाक दिखने वाले भड़कीले लगय, होयं। नचनी के बाहरी में पिट्टी कढ़ी, बड़ा-बड़ा गूरिया कश्मी, टेबल में मोट- मोनेटनी, नेकी में बड़ी नथुनी, काने में भी।
धोबिया लोक संस्कृति में कई ठे मिथकीय नायक हयन. कलाकार लोग गीत के माध्यम से अइसन मिथक खास कइके पेश करयलन. बलदेव धोबी अउर गिरधारी धोबी जइसन नायकन क मिथक, कहानी बहुत प्रसिद्ध हौ. हर कलाकार धोबिया नाच में गीत के माध्यम से इ मिथक पेश करयला. एकरे अलावा धोबी जाति के उत्पत्ति क मिथक, गदहा क मिथक, नदी-तालाब क मिथक भी धोबिया गीत क खास अंग हयन. जइसे एक मिथक में धोबी जाति के सिंधु घाटी सभ्यता क वारिस मानल जाला. दूसरे मिथक में धोबी जाति क संबंध कोरबा जनजाति से जोड़ल गयल हौ.
धोबी नाच में पहिले धोबी विशेषज्ञ ने भाग लिया। लोक कला के कटि के साथ ही लॅलयन में भी शामिल हैं। समय में कुछ अइसलें कि आज इ विधा से यौबा कैहले हउअन। बिबियान नाच, धोबी लोक कला खतम होवय के धोई गय्यल हौ। पहिले कम से कम धोबी जाति के हर उत्सव-समारोह, शादिया में धोबिया नाच देख के मिलय। लेकिन आजाबी जाति के लोग भी अंगरेजी बंद पर आई गयल हयन। लोई-रोटी की प्रतिक्रिया कला दूसर पेशा अपना लेहले है। नई दिल्ली त धोबिया, लोक कला से अदालतें बाँइस लेहले बा। आज धोएयन लोक कला के रक्षाय, रक्षित कड़क आइवा गायल बा, कलान के लिए कला के रक्षा के लिए। नां एक दिन धोबिया लोक कला में इतिहास बनि के रहिई।
(सरोज कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)
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पहले प्रकाशित : मई 05, 2022, 17:21 IST
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