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स्टोरी हाइलाइट्स
- 20 मई को रिलीज हो रही पंचायत
- पहला सीजन हुआ था हिट
रघुबीर यादव बॉलीवुड फिल्मों में अपने देसी किरदारों के लिए जाने जाते हैं. ऐसे किरदारों के प्रति अपने झुकाव पर रघुबीर कहते हैं कि वे उसी मिट्टी से आते हैं. इन दिनों रघुबीर अपने पॉपुलर शो पंचायत 2 के प्रमोशन में खासे व्यस्त हैं. सीरीज और निजी जिंदगी पर रघुबीर ने आजतक.इन से बातचीत की.
सवालः पंचायत-2 फाइनली अब रिलीज को तैयार है. कितने उत्साहित हैं?
रघुबीर यादवः हमेशा की तरह नए सीजन को लेकर खासा उत्साहित हूं. जब पहला सीजन इतना सक्सेसफुल हो जाता है, तो जिम्मेदारी अपने आप बढ़ जाती है. उसी जिम्मेदारी को समझते हुए हमने अपना काम किया है. हालांकि, हमारा फोकस इसकी पॉपुलैरिटी से ज्यादा इसकी बेहतरी पर रहा है. उसी नीयत और मेहनत से काम किया है.
सवालः पंचायत को लॉकडाउन का फायदा मिला था. अब चीजें अनलॉक हुई हैं, आपको लगता है कि दोबारा वो प्यार मिल पाएगा?
रघुबीर यादवः अब पंचायत की वजह से लॉकडाउन होगा, लोग अपने घर पर बैठे रहेंगे और कोई बाहर नहीं निकलेगा. देखिए इस बात में दो राय नहीं है कि इस शो को लॉकडाउन का फायदा मिला था. लेकिन कंटेंट भी अच्छा था. उस दौरान लगभग 200 शोज आए थे. इसकी क्रिएटिव जिम्मेदारी भी होती है. जिन्होंने पहला सीजन देखा है, वो पूरी तरह संतुष्ट होकर गया है और उन्हें दूसरे सीजन का इंतजार भी है. अब तो रिलीज के बाद ही क्लैरिटी मिल पाएगी.
सवालः प्रधान के किरदार से आप निजी जिंदगी में कितना वाकिफ रहे हैं?
रघुबीर यादवः मैं मध्यप्रदेश के एक छोटे से कस्बे से हूं. मैंने पंचायत जैसी लाइफ जी है. मैं प्रधान नहीं रहा, लेकिन बैलगाड़ी चलाया करता था. मैं मुखिया और उनकी जिंदगी से वाकिफ हूं. कई जगह अच्छा माहौल होता था, तो कई लोग पैसे और रौब के लिए इस पद का इस्तेमाल करते थे. मैं जिस जिंदगी से गुजरा हूं, तो यह इनपुट आपके काम पर आ ही जाती है.
सवालः मुंगेरीलाल की बात हो या पंचायत के प्रधान की, आपके किरदारों में गांव की खुशबू झलकती है.
रघुबीर यादवः क्या करूं, जड़ें ही वहीं से हैं. शहरी किरदार भी किए हैं, लेकिन ज्यादातर गांव वाले किरदार ही मिलते हैं. मजा भी इस तरह के किरदारों में है, नैचुरल हो जाता है. फिर भी मैं ऊबा नहीं हूं, मैं मानता हूं कि अब भी बहुत कुछ पड़ा है. मैंने यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश में घूम-घूमकर शोज किए हैं. वहां रहा हूं. उस दौरान भी गांव में ऐसे-ऐसे किरदार गुजरे हैं, उन्हें इतना ऑब्जर्व किया है. मुझे लगता है कि पूरी जिंदगी कम पड़ जाएगी, लेकिन वो किरदार कभी खत्म नहीं होंगे.
सवालः आपने स्टेज पर कहा कि आपने हमेशा ये दिल मांगे मोर स्लोगन पर काम किया है. एक एक्टर के तौर पर कितने संतुष्ट हैं?
रघुबीर यादवः एक आर्टिस्ट के तौर पर वो झटपटाहट तो रहती है. मैं अपने काम से कभी संतुष्ट रहा ही नहीं. मुझे नहीं लगता कि मैंने कुछ कमाल किया है. उस कमाल मोमंट का इंतजार कर रहा हूं. बहुत सी खामियां हैं, उस पर काम करता रहता हूं. कुछ नया करने की कोशिश करता रहूंगा.
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सवालः पंचायत जैसे शोज के पॉपुलर होने की क्या वजह मानते हैं?
रघुबीर यादवः पंचायत की सक्सेस की कई वजहें हैं. इसकी सरलता ही सबसे बड़ा कारण है. दूसरी वजह लॉकडाउन के वक्त जिन लोगों ने टीवी छोड़ दिया था, उनके लिए ये एक बेहतरीन ऑप्शन बनकर आया. टीवी का हाल तो आप सभी देख ही रहे हैं, वहां फैक्ट्रियां खोल दी गई हैं. अब लोग हजार ऐपिसोड की होड़ में हैं. हमारे तो आठ एपिसोड ही थे. हम लॉकडाउन को दुआ भी देते हैं कि हमें लोगों तक असली हिंदुस्तान पहुंचाने का मौका मिला. यहां की जुबान जो इस्तेमाल की गई है, वो भी काफी खूबसूरत है. बिल्कुल किताबी नहीं लगती है, आम बोलचाल की भाषा है. मुझे लगता है कि असली हिंदुस्तान पंचायत में ही बसा हुआ है. जिसे हम भूलते चले जा रहे हैं. बाकि और माहौल चल रहा है कि कहीं की कॉपी कर दी, किसी का रीमेक बना दिया, उससे अभी थोड़ा सा ऊब गए हैं. पंचायत ने देसीपन को कूल बना दिया है. हमारे देसीपन में जो एनर्जी है, वो कहीं भी नहीं मिलेगी. यहां इमोशन में वैरायटी है, विदेशों में तो दो-चार इमोशन में जिंदगी खत्म हो जाती है.
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सवालः आपने इंडस्ट्री में एक लंबा अरसा गुजारा है. आज की जनरेशन की कौन सी चीजें तकलीफ देती हैं?
रघुबीर यादवः पहले मामला स्लो चलता था. अब लोग तंग ज्यादा करने लगे हैं. अब तो ये मेकर्स वक्त नहीं देते हैं. रिहर्सल भी वहीं करवा लेते थे. कॉरपोरेट के आने के बाद, इनका कॉन्ट्रैक्ट पढ़ लें, तो पागल हो जाएंगे. ये लोग नोंच लेते हैं. पूरा अधिकार जमाने लग जाते हैं. कभी-कभी इतना तंग हो जाता हूं कि लगता है कि काम ही छोड़ दूं. आजादी तो बिल्कुल भी नहीं रही है, जहां साइन करवाते हैं, वहां आजादी कैसे रह पाएगी. मुझे आज की कहानियां बहुत ज्यादा सरप्राइज नहीं करती हैं. किताबी जुबान बहुत आ गई है, जिसे बोलने में दिक्कत होती है. स्क्रिप्ट भी रोमन में लिखते हैं, कई बार रोमन की वजह से पढ़ा नहीं जाता है. डायलॉग याद ही नहीं होते हैं. बहुत परेशान हो जाता हूं. इसलिए मैं पहले मेकर्स से जाकर कहता हूं कि आप स्क्रिप्ट मुझे दे दें, मैं पहले इसे हिंदी में लिख लूंगा. क्योंकि हिंदी के लफ्ज अगर हिंदी में पढ़ेंगे, तब ही इमोशन समझ आएगा और आप उसे हिंदी में डिलीवर कर पाएंगे. अंग्रेजी तो जेहन में उतरती ही नहीं है.
सवालः ऐसा कोई किरदार जिसे परदे पर उतारने का मन हो?
रघुबीर यादवः मुझे पेंटर वैन गॉग का किरदार निभाने का बड़ा मन है.
तो फिर दोस्तों कौन-कौन पंचायत 2 देखने के लिये तैयार है?
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